कुमारसैन,
जगती शब्द का अर्थ एंव सम्बन्ध मनुष्य जीवन, संसार, पृथ्वी और इस जगत् से है। देवभूमि हिमाचल के कुल्लू में देव संसद अर्थात एक मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था को "जगती" के नाम से जाना जाता है। कुल्लू घाटी को हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मनुष्य अर्थात मानव जाति का गढ़ माना जाता है। अनेक पौराणिक ग्रंथ तथा रामायण और महाभारत में कुल्लू घाटी की प्राचीनता स्पष्ट होती है।
विश्व कल्याण के उद्देश्य से जगत की खुशहाली एंव समृद्धि हेतु देवभूमि हिमाचल के देवी-देवताओं आज्ञानुसार कुल्लू घाटी में "जगती" एक अद्भुत एंव समृद्ध परंपरा है। यह देवपरंपरा वैदिक काल से चलते हुए आजतक हमारी समृद्ध संस्कृति को संजोए हुए हैं।
परम्परा के अनुसार भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार भगवान कि पूजा करने के बाद धर्म संसद अर्थात जगती पट पर विषय के सन्दर्भ में देवताओं के गुर के समक्ष प्रश्न रखते हैं जिसे स्थानीय भाषा में पूछ कहा जाता है। पूछ के माध्यम से ही गुर, देवताओं के वचन देव संसद में सुनाते हैं।
ऐतिहासिक गांव नग्गर प्राचीन काल में कुल्लू रियासत की राजधानी थी। ऐसी मान्यता है कि सतुयग में हजारों देवी-देवताओं ने मधुमक्खियों का रूप धारण कर यहां जगती पट स्थापित किया था। संकट की स्थिति में सभी देवी- देवता इस जगती पट में एकत्रित होकर उसका समाधान निकालते हुए आदेश जारी करते हैं। जोकि सर्वमान्य होते है।
भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार राजा महेश्वर सिंह से देव समाज एंव देव संस्कृति पर विस्तृत चर्चा से स्पष्ट हुआ कि जगती देव आदेश पर ही होती है। नग्गर गांव की अराध्य देवी माता त्रिपुरा सुंदरी से आज्ञा लेकर जगती का आयोजन नग्गर में स्थित जगती पट में होता है। और भगवान रघुनाथ जी की आज्ञा के बाद जगती रघुनाथपुर में आयोजित होती है। महत्वपूर्ण निर्णय तथा न्याय की स्थापना और सम्पूर्ण जगत के कल्याण एंव सुख शांति हेतु समय-समय पर देव आदेशों पर ऐतिहासिक जगती पट पर जगती का विशेष आयोजन किया जाता है।