शिमला,
हिमाचल की राजनीति आज शोले फ़िल्म के किरदारों जय, वीरू और ठाकुर की पक्की दोस्ती और विश्वास की डगर पर चलती दिख रही है। ठाकुर को अपने जय और वीरू पर भरोसा है। ठाकुर ने जय और वीरू की क़ाबलियत, हिम्मत और ईमानदारी को पहचान लिया है। जब अपनों ने ठाकुर को धोखा देने की कोशिश की तो यहाँ जय और वीरू साथ हो लिए ।
पहाड़ो की सर्द फिजाओं में हाथ न मिलाने की खबरों की गर्माहट से भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म शोले का स्मरण हो आया। फिल्म का डायलॉग ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर वर्तमान परिदृश्य में भी प्रासंगिक है। आम जनमानस पर शोले फिल्म का गहरा असर रहा। फिल्म में नायकों की पक्की दोस्ती बेहद प्रसिद्ध हुई, आज भी घनिष्ठ मित्रता जय और वीरु की जोड़ी के नाम से प्रचलित है।
पहाड़ो के मुखिया से प्रदेश के गांवों का हर खासों-आम स्वयं का जुड़ाव महसूस करता है। शोले फिल्म की तरह ही प्रदेश का हर आम आदमी भी जय का पक्का दोस्त वीरु हैं, जोकि स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकेत है। भले ही जय का हाथ थामने में बड़े घरानों के लोगों को रुचि न हो, लेकिन आम आदमी (वीरु) हमेशा हाथ मिलाने और साथ निभाने के लिए तत्पर है। जय का हाथ प्रदेश के सभी वीरु को सौभाग्य एंव संजीवनी के समान है।
प्रदेश की राजनीति में कई युगों का अंत हो चुका है, लेकिन विविधताओं का भी अपना अंदाज है। देश में उगते सूरज के साथ-साथ डूबते हुए सूरज की भी पूजा की जाती है। राजनीतिक परिदृश्य में यह कहावत सटीक बैठती है कि जब तक साँस है, तब तक आस है। राजनैतिक माहौल में जनभावनाओं को नजरअंदाज करना घातक होता है, हाल-फिलहाल यह राजधानी ने भी समझाया है। शोले फिल्म भी शुरुआती दौर में सफल नहीं हुई थी, इसलिए समीक्षकों का आलोचना करना भी स्वाभाविक था।
पहाड़ो में जय और वीरु की दोस्ती फिलहाल दिलो-दिमाग तक ही सीमित है। पहाड़ों के वीरु अपने जय से कह रहे हैं कि ये हाथ हमको दे दे ठाकुर, सिर्फ दोस्ती में साथ निभाने के लिए। भले ही शोले की पटकथा में जय और ठाकुर दो अलग-अलग किरदार है, लेकिन हमारी कहानी में जय और ठाकुर एक ही किरदार का नाम है। हमारी दिलचस्पी शोले के एक डायलॉग को वर्तमान संदर्भ से देखने में है जिसमें जय और वीरु को कहा जाता है कि लोहा गरम है, मार दो हथौड़ा।