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कविता

सच्ची खोज

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प्रीति शर्मा असीम | September 04, 2020 05:44 PM

*सच्ची खोज*

अपने में
अपने को
अपना मानकर
अपने लिये
अपना बनकर
अपने को अपनाकर
अपने भीतर बैठकर
आत्ममुग्ध हो कर
अपने में खो कर
खुद को भूलकर
अपने से लिपटकर
आत्दर्शन
स्वदर्शन
विश्वदर्शन
संभव है-
ब्रह्मदर्शन।
खोजते रहो
मंजिल मिलेगी
किनारा मिलेगा
आशा पूरी होगी
मन की व्याकुलता मिटेगी
स्वावलंबी बनोगे
परम शान्ति का अनुभव होगा
यात्रा पूरी होगी
लिप्सा मरेगी
लोक का अन्त होगा
मन प्रशांत होगा।

रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

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