*सुन्दर भाव*
सुन्दर भावों से रच देना।
इक सुन्दर सा भारत देना।।
करें प्रीति सब मानवता से ।
रहें दूर सब दानवता से।।
वैर भाव की फसल उगे ना।
काम क्रोध की अलख जगे ना।।
सहज प्रीति का प्रिय आसन हो।
सुन्दर मन का सिंहासन हो।।
दया भाव का विद्यालय हो।
भोलेशंकर का आलय हो।।
मीठा-मीठा सबका उर हो।
आत्म भाव का अन्त:पुर हो।।
गंगा-यमुना की लहरें हों।
गंदे सकल कर्म बहरे हों।।
शुचितापूर्ण भरत का भारत।
जागे जग मेँ सुन्दर शिव सत।।
रचनाकार:डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801