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कविता

शहीद पांडे गणपत राय की कहानी, सीमा सिन्हा की कलम से

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सीमा सिन्हा | October 18, 2020 06:25 PM

 मुंबई,

17 जनवरी 1809 ग्राम भेाैरो, जिला लोहरदगा ,रांची झारखंड एक सपूत का जन्म हुआ।

नाम पांडे गणपत राय जो भारत पर कुर्बान हुआ ।
मां की छाती से शहीद के लिए दूध छलका था।
पिता रामकिशुन राय के आंगन में, गूंजी थी किलकारी।
किसे पता था मां भारती के लिए इसके मन में थी बसी कुर्बानी ।

विवाह कर लाए सुगंध कुंवर को भूल गए जज्बातों को ।
१८५७ में मंगल पांडे ने इनको आवाज लगाई थी।

लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा सेनानायकी निभाई थी ।
छक्के छूटे अंग्रेजों के, मुंह की मात खिलाई थी ।

हाय क्या कहूं परहे पाट के महेश साही ने गद्दारी दिखलाई थी।
उस वीर सिपाही को गिरफ्तार करवाई थी।

कैप्टन डाल्टन के द्वारा इनको 21 अप्रैल १८५८ को फांसी दिलवाई थी ।
रांची के शहीद चौक स्थित, शहीद स्थल पर हाय वह कदम का पेड़,

कितना रोया थाचिल्लाया था
जिस पर इनको ,गद्दारों ने झुलाया था।

वीर शहीद को जाते देख डाली डाली कुम्हलाया था।
एक फल भी ना कभी इसपर आया था

शान है मुझे मेरी माता, सरोज राय इनकी परपोत्री कहलाई थी।
तुझे नमन है पूर्वज मेरे शहीद हुए तो क्या ?

हम सब ने सीने में अभी तेरे नाम की लौ जलाई है।
फिर से आना मेरे घर में ,द्वार पर हमने दीप सजाई है।

 

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