आसमानी चाँद
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करने लगी हूँ खुदा का शुक्र अदा ,
जिसने चाँद को आसमानी जमीं देदी,
प्रेमियों के दिल की धड़कन बना कर,
उसे सूरत इतनी हसीन दे दी।
आज चाँद चाँदनी की खूबसूरती पर
मदहोश हो इस कदर इतराता है,
कभी हिंदुओं का करवाचौथ बन,
कभी मुसलमानों की ईद बन जाता है।
न सर पर पल्लू है न तन पर है बुरखा,
फिर भी बन बैठा है प्रेमियों का सखा ,
आज चाँद यदि इस जमीं पर होता,
तो मैं कविता में कुछ और पिरोता।
वह न आज वाह वाही का दावेदार होता
न उसे किसी तबज्जो का अख्तियार होता।
हिन्दू मुस्लिम के विवादों में बीच फंसे चाँद पर
कोर्ट की हजारों दलीलों का अम्बार होता।
तब न वह आशिकों की शायरी होता,
न उसे कभी प्रेमियों का दीदार होता।
गंदी राजनीति के दलदल में फंस कर
चाँद अपनी शख्सियत से बेजार होता।
आज दिल फना होगया आसमां को चूम कर
जिसने धरती को खूब सूरत गजल देदिया।
चाँद के हुश्न से अपनी महफ़िल सजा ,
हुश्न प्रेमियोँ को जीने का सबब दे दिया।।।।।
मंजू भारद्वाज