रचना...... का सफर
वक्त और जज्बातों का जब मिलन होता है,
तभी नई रचना का उद्गम होता है।
जन्मती है वो भावनाओं के गर्भ से,
झूलती है वो शब्दों के झूले में।
बढ़ती है वो ख्वाबों की ताबीर लिए,
चलती है सुर ताल की झंकार लिए।
किन शब्दों से मैं करूँ इनकी अर्चना,
पाँव नही है पर विश्व भ्रमण करती है रचना।
कभी प्रेमी के दिल का पैगाम बन कर,
कभी दुश्मन की तीरे -कमान बन कर ।
कभी विरह वेदना को सहलाते हुए,
कभी लहरों पर आशियाँ बनाते हुए।
नवरस की खुशबू से लिपटी हुई ,
इठलाती बलखाती चलती है रचना।
किन शब्दों से मैं करूँ इनकी अर्चना,
पाँव नही है पर विश्व भृमण करती है रचना।
हर कवि के कलम का ये उदगार है ,
उनकी जीवन नैया का ये पतवार है।
कही ओस सी मासूमियत में लिपटी हुई,
कहीं पानी मे आग लगाती हुई ।
जितना भी चाहो इन्हें पहलू में छुपाना,
कब्र में दबे अहसास कुरेद जाती है रचना।
किन शब्दों से मैं करूँ इनकी अर्चना,
पॉँव नही है पर विश्व भृमण करती है रचना।।।।।।।।।।
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मंजू भारद्वाज