झूठ ही चलन में है।
और हो क्या रहा है.....भारत में ।
भारतीय समाज में...व्यवहार में ।
यही तो हो रहा है ।
झूठ सब जगह
स्वीकार ,
अंगीकार ।
सच की तो मृत्यु हो चुकी है ।
और हो रही है..
.होती रहती है । ।
इस लिए तो......
उसका पता ही कहा है अब ....?
ऐसे ही मारा जाता है ।
बहुत सारे उपाय हैं ,
अलग - अलग संविधानों में ,
सत्ताओ में , और तंत्रों में .
जरूरी नहीं कि,
गैस- चैंबर ही सर्वोत्तम उपाय हो ,
या , फांसी ,या फिर , काला पानी ,
या आजीवन कारावास की सजा ही ,
दी जाए क़ाल कोठरी में . निर्भर करता है , विधान पर ,
और आपके इस्तेमाल पर ।। ।
कौन सा उपाय सही रहेगा ,
व्यवस्था तय कर लेती है ।।
पूंजीवाद है , तो आप उपभोक्ता हैं,
आपको मारने के तरीके अलग होंगे ,
जो आपकी जेब के अनुसार तय होंगे ।।
महगाई , फीस वृद्धि , बेरोजगारी ,
व्यापार में घाटा ,भूख , भुखमरी ,
गरीबी , इलाज न होना ,
फसलों का बर्बाद होना ,
ऐसा कोई भी कारण,
हो सकता है....
जरूरी नहीं कि,
आपको बताया ही जाए ।
या फिर ,आपको पता चल जाए ।
अचानक ही कारण बन जाते हैं ।
जो मरते नहीं ,
मार डाले जाते हैं ।
और अनेकों आत्महत्या से,
स्वर्ग को सिधार जाते हैं ।।
लोकतंत्र है ,
तब फिर दूसरे उपाय अपनाए जायेंगे , जल्दबाजी बिल्कुल नहीं होगी ,
आप वोटर हैं ,
काफी छूटो के हकदार होंगे ,
आपकी आर्थिक क्षमता और व्यवहार के अनुसार ,
मौत स्वयं तय हो जाएगी ।।
किसी गैस कांड में , या फिर अग्नि दुर्घटना में , अस्पताल में ,
बीमारी से, या फिर लाचारी से , दंगे में या फिर कर्फ्यू में हाथरस में ,
या फिर भागलपुर में , भोपाल में , या फिर जालंधर में ,
कोई न कोई तरीका बन जाएगा ,
आपका क्रिया - कर्म हो जाएगा.
इस लिए ,मृत्यु नही जीवन समस्या है।
पर इस की नहीं कोई व्यवस्था है ।
किसी भी तंत्र में , संविधान में , या फिर ,
विश्व में या विश्व स्वास्थ संगठन के विधान में , इस हैवानियत भरे दौर,
राज और संसार में ।।।।।