नीचले क्षेत्रों में त्वचा को झुलसा देने वाली गर्मी से निजात पाने को हजारों देशी व विदेशी सैलानियों ने इन दिनों हिमाचल प्रदेश के ठंडे पर्यटन स्थलों की ओर अपना रूख किया हुआ है।प्राकृतिक सुंदरता और ठंडी ठंडी शीतल हवाओं से सराभोर कुल्लू के मनाली,रोहतांग बशिष्ठ,कसोल तथा मनीकरण जैसे स्थल पर्यटन के लिहाज से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र में उभरने से इन स्थलों की प्राकृतिक सुंदरता और ठंडी बादियों का लुत्फ उठाने को इन दिनों देश व विदेश के लाखों सैलानियों का तांता लगा हुआ है,जिससे कुल्लू मनाली के पर्यटन को चार चांद लगे हुए हैं।हालांकि जिला कुल्लू में मनलुभावने स्थलों की कोई कमी नहीं,मगर जिला के बाहय व भीतरी की सीमा पर लगभग 10280 फीट की उॅंचाई पर स्थित प्रमुख जलोडी दर्रे पर भी इन दिनों सैंकडांें सैलानियों का हुजुम देखा जा सकता है।जलोडी दर्रे के टाॅप से दोनो ओर दिखाई पडती खूबसूरत वादियांऔर ठंडी ठंडी फिजाएं सैलानियों को शहर की भागमभाग जिंदगी से हटकर एक परम सुख की अनुभुति करा रही हैं। यहां के ढावों में मिलने वाले शक्कपारे का स्वाद सैलानियों और अन्य आगन्तुकों बेहद पसंद है।जलोडी दर्रे पर आदिशक्ति मां काली जोगणी और पवनसुत हनुमान के मंदिर में माथा टेककर सैलानियों के कदम आगे बढते हैं,यहां से लगभग तीन कि.मी. दूर स्थित सरेओलसर झील की ओर।प्रकृति की आभा मंें स्थित यह पवित्र एवं सौम्य झील अपनी अदभुत प्राकृतिक छटा से हर आंगतुक को अचंभित करती है।लगभग एक कि.मी. की परीधि से घीरी यह झील यहां स्थित माता बुढी नागिनकी गोद में स्थित है। समुद्रतल से लगभग साढे नौ हजार फीट की उॅंचाई पर स्थित सरेओलसर झील तक पहुॅचने के लिए सैलानियों तथा भक्तों को जलोडी दर्रे से आगे लगभग तीन कि.मी. की सरपीली पैदल पंगडंडी को पार करना पडता है।मार्ग में पीने के लिए किसी प्रकार के पेयजल की सुविधा ने होने से सैलानियों को जलोडी दर्रे से ही अपने साथ बोतल में पानी भरकर ले जाना पडता है।इस झील का सम्बन्ध पांडवों से भी जोडा गया हैं।किवदंति है आदिकाल में पांडव बनवास के दिनों में जब हिमालय की ओर आए थे,तो सरेओलसर में भी उन्होंने एक रात्रि को विश्राम किया था और प्रातः झील में स्नानआदि कर माता बुढी नागिन की पूजा अर्चना की थी।"कहते हैं कि पांडवों ने उस दौरान झील के किनारे धान भी लगाया था,जो समय अनुसार आज भी लगता है"रेओसर झील के बारे में एक अदभुत बात यह भी है कि झील की परीधी के ईर्द गिर्द कई तरह के जंगली पेड पौधे विद्यमान में हैं,तेज हवा चलने पर इनके पत्तों की गूंज से समुचा वातावरण गंूजायमान हो उठता है।इसी दौरान पेडों से पत्ते हवा के साथ उडकर झील में आ गिरते हैं।मगर अंचम्भा कि एक आभी नाम की चिडिया झील में से पत्तों को चुनकर वाहर निकाल देती है और झील का पानी सदैव सौम्य वना रहता है।पर्यावरण की स्वच्छता के लिए आभी एक प्रेरणा और आदर्श है।बतातें चलें कि आभी नाम की इस चिडिया पर आकाशवाणी शिमला द्वारा एक डक्युमेंटरी भी तैयार कर उसे प्रसारित किया गया है और कुछ लेखकों ने इस पर पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं।सरेओलसर की विशेषता को जिंतना व्यां किया जाए,उतना कम है।यह झील एक प्रसिद्व पर्यटन स्थल होने के साथ साथ धार्मिक आस्था और शक्ति का प्रमुख स्थल भी है। इस झील और यहां स्थित माता बुढी नागिन के प्रति जिला कुल्लू के इनर और आउटर सराज के लोगों की अगाध श्रद्वा और अटूट धार्मिक आस्था है।ग्रामीण अपने दुधारू पशुओं द्वारा पहली बार दूध दिए जाने के बाद उससे तैयार मक्खन घी को सबसे पहले सरेओलसर पहॅुुकर माता बुढी नागिन और सरेओलर झील को चढाते हैं और घी की धार से झील की परिक्रमा भी करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से माता बुढी नागिन प्रसन्न होती हैं और माता के आशिवार्द से उनके घर में घी दूध की कोई कमी नहीं होती।क्षेत्र के देवी देवता भी हर वर्ष यहां आकर झील की परिक्रमा करते हैं और माता बुढी नागिन से अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त करते हैं।इस स्थल के दीदार पाने को इन दिनों यहां देशी व विदेश सैलानियों का तांता लगा हुआ है। जरूरत है तो बस इस स्थल को पर्यटन के मानचित्र पर धार्मिक पर्यटन की दुष्टि से विकसित करने की।