गुड़गाव,
मां शारदे तुमने मेरे
जीवन को वह सौगात दी
सूखी हुई थी जो धरा
शीतल मधुर बरसात की
में जानती थी कुछ नहीं
में मानती थी कुछ नहीं
तुमने उठा कर स्वयं ही
एक लेखनी मेरे हाथ दी
मां शारदे तुमने ------
मेरे शब्दों में न जान थी
ना अर्थ की पहचान थी
देकर मुझे अमृत कलश
दी ताजगी प्रभात सी
मां शारदे तुमने------
ना जिंदगी से प्यार था
ना ही कोई खुमार था
हृदय जगाकर प्रेम को
यूं प्रेम की बरसात की
मां शारदे मेरी ------
ना जिंदगी में गीत था
ना ही कोई संगीत था
तुमने बजा वीणा मधुर
लय छंदों की बरसात की
मां शारदे मेरी ------
ना जिंदगी में उमंग थी
ना मन में कोई तरंग थी
प्राणों में प्राण घोलकर
मुझे प्राण शक्ति मातु दी
मां शारदे तुमने-----
मां शारदे तुमने मेरे
जीवन को वह सौगात दी
सूखी हुई थी जो धरा
शीतल मधुर बरसात की