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शिक्षा

एस एफ आई हिमाचल प्रदेश इकाई द्वारा उच्च शिक्षा निदेशक को छात्रवृति से सम्बंधित सौंपा मांगपत्र

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हिमालयन अपडेट ब्यूरो | April 19, 2021 05:49 PM

शिमला,


एस० एफ० आई० हिमाचल प्रदेश इकाई द्वारा उच्च शिक्षा निदेशक को SC ओर ST की छात्रवृति से सम्बंधित मांगो को लेकर एक मांगपत्र सौंपा 
एसएफआई ने यह मांग उठाई की अभी हाल में ही जो उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा यह फरमान जारी किया है कि कोई सरकारी कर्मचारी सरकार की नीतियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई भी टिप्पणी ना करें उनका यह साफ तौर पर मानना है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी सरकार की नीतियों के खिलाफ यदि सोशल मीडिया के अंदर भी कोई टिप्पणी करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। एस0 एफ0 आई0 इसका पूर्ण रूप से विरोध करती है और यह मांग करती है कि जल्द ही जल्द इस लिए गए निर्णय को वापस लिया जाए। तथा अभी हाल ही के अंदर जो किताबों की कीमतों के अंदर 25% बढ़ोतरी की गई है उस निर्णय को वापस लेने की मांग की गई। एसएफआई का यह साफ तौर पर मानना है कि एक तरफ सरकार जहां सब को शिक्षा देने की बात करती है वहीं दूसरी और शिक्षा के अंदर 18% जी0 एस0 टी0 लगाना और किताबों की कीमतों के अंदर वृद्धि करना इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार गरीब तबके से शिक्षा को वंचित रखना चाह रही है क्योंकि ये फैसला छात्र विरोधी नीतियों को साफ दर्शा रहा है।
एस० एफ० आई० ने उच्च शिक्षा निदेशक के समुख छात्र समस्याएं रखते हुए बताया कि पिछले कुछ सालों से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृति में लगातार कटौती हो रही है। छात्रवृति में हो रही लगातार कटौती से कई सारे अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, पीएचडी और इसके बाद के कोर्सेज के लिए फेलोशिप और स्कॉलरशिप में 2014-15 से लगातार गिरावट आयी है. इसके मुताबिक, एससी के लिए यह रकम 602 करोड़ रुपये से घट कर 283 करोड़ रुपये हो गयी, जबकि एसटी स्टूडेंट्स के लिए यह 439 करोड़ रुपये से कम होकर 135 करोड़ रुपये हो गयी. इसी प्रकार से यूजीसी और इग्नू में एससी और एसटी समुदाय के छात्रों के लिए हायर एजुकेशन फंड्स में क्रमश: 23 पर्सेंट और 50 पर्सेंट की गिरावट हुई.
मोदी सरकार ने 'माध्यमिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना (NSIGSE)' के बजट को 99.1% घटा दिया है। इस योजना के तहत 8वीं पास करने वाली अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की छात्राओं को स्कॉलरशिप दी जाती थी, ताकि वो पढ़ाई न छोड़ें। सरकारी आंकड़े के अनुसार, हर साल 8वीं में पढ़ने वाली तीन लाख से ज्यादा छात्राओं को 9वीं की पढ़ाई छोड़नी पड़ती है। सरकार ने 2017-18 में जब इस योजना का बजट बढ़ाया था, तब पढ़ाई छोड़ने वाली छात्राओं में एक तिहाई की भारी कमी आई थी। साल 2020 में जब कोरोना महामारी के वक्त SC-ST बच्चियों की पढ़ाई अधिक खतरे में है, तब सरकार ने इसका बजट घटा दिया है।
RTE फोरम के अनुसार, देश में 11 से 14 साल की 16 लाख लड़कियां स्कूल नहीं जातीं। इनमें SC-ST की माध्यमिक शिक्षा के लिए जाने वाली छात्राओं की हालत सबसे खराब है। इस वक्त 6वीं से 10वीं कक्षा तक देश में कुल छात्राओं में SC-ST बच्चियों की भागीदारी महज 13.6% है। इनमें 18.6% SC और 8.6% ST हैं। जनसंख्या में SC-ST की भागीदारी 28% से ज्यादा है। यानी आज भी 50% से ज्यादा SC-ST बच्चियां 9वीं कक्षा तक नहीं पहुंच पातीं। ऐसी बच्चियों की संख्या कम हो, इसी उद्देश्य के साथ 2008 में यह प्रोत्साहन योजना शुरू हुई थी।
सरकार ने 2019-20 में योजना का बजट 100 करोड़ रुपए रखा, लेकिन खर्च 8.57 करोड़ रुपए कर पाई। अगले साल यानी 2020-21 में 110 करोड़ का बजट घोषित तो किया, लेकिन खर्च एक करोड़ ही हुए। इस योजना के लिए 2021-22 का अनुमानित बजट एक करोड़ है। इस साल कितनी SC-ST छात्राएं 9वीं में जाएंगी, इसका पुख्ता आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन 2019 तक हर साल करीब 27 लाख SC-ST छात्राएं 9वीं में प्रवेश ले रही थीं। अगर योजना के तहत हर छात्रा को तीन हजार की स्कॉलरशिप दी जाए तो भी 800 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट चाहिए होगा
एस०एफ०आई० का साफ मानना है कि सरकार का यह कर्तव्य है कि शिक्षा सभी वर्गों, समुदाय व छात्रों को मुहैया करवाई जाए लेकिन पिछले दो दशक से हम देखें तो सरकार लगातार शिक्षा के बजट में कटौती करती आई है, ग्रॉस इनरोलमेंट रेशों को बढ़ाने की जगह उसमे लगातार गिरावट हो रही है और एससी एसटी वर्ग को एक बराबरी के स्तर पर लाने की जगह लगातार पूंजीपतियों के लिए पॉलिसी बनाती जा रही है ओर शिक्षा को एक अधिकार से एक व्यापार बनाने की कोशिश की जा रही है जिससे यह साफ झलकता है कि सरकार कहीं ना कहीं जो पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए जो उसका कर्तव्य है उससे अपना पल्ला झाड़ने का काम कर रही है जिसका एस०एफ०आई० साफ तौर पर विरोध करती है तथा यह मांग करती है कि सभी प्रकार की छात्रवृति को तुरंत प्रभाव से बहाल किया जाए अन्यथा एस०एफ०आई० तमाम छात्र समुदाय की एकजुट करते हुए उग्र आंदोलन करेगा जिसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

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