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कविता

क्षण की प्रलय कर प्रकृति तो संवर जाएगी :बिंदु प्रसाद रिद्धिमा

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बिंदु प्रसाद रिद्धिमा | June 24, 2021 09:59 PM

अट्टालिकाएं

पशु पक्षी जल रवि समीर सब हो रहे दफ़न
यह अट्टालिकाएं नहीं बन रहे खुद के कफ़न।

मौन चीखता रहा पीकर अपनी घुटन
सागरों की लहरों पर उठती भवनों की चुभन

विनाश कर रहा, रोक धरती नभ का मिलन
सौंधी मिट्टी की खुशबू, रोक रोए यह जीवन

तीव्रताअच्छी नहीं विकास तू रुक जा ज़रा
भय प्रलय का कर विनाश तू थम जा ज़रा

भरभरा कर गिर न पड़ना आधार रख मजबूत
जल्दीबाजी काम शैतान का मान यह दस्तूर

नाश कर प्रकृति का मानव तू बड़ा पछताएगा
अट्टालिकाओं की चकाचौंध में स्वयं जल जाएगा।

क्षण की प्रलय कर प्रकृति तो संवर जाएगी
अपनों को जला तू रोशनी न देख पाएगा।

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