शहर का मंजर
नए जमाने का नया दौड़ होता है।
फुटपाथ का मंजर ही कुछ और होता है
खड़े हो जाये बेफिक्र से हम थके हारे,
देखें ऊँची इमारतें चाहे कितना भी शोर होता है।
गगन चुम्बी इमारतों से बस गया सारा शहर।
इंसानों के चलने के खातिर है फुटपाथ का डगर।
कितनों को रोजी रोटी ये शहर दिलाता है।
इसलिए तो यह महानगर कहलाता है।
इस शहर में न कितनों का सपना साकार हुआ।
बनी इमारतें तो हरियाली सारा बेकार हुआ।
दूर से भी दृश्य मनभावन सुहाने लगते है।
देखते हुए राही फुटपाथ पे चलते हैं।
गुजर रहे थे हम भी एक दिन इन राहों से।
हमने भी आहें भरी देख के अपनी निगाहों से।
निकला जब शहर घूमने मौसम भी मतवाली थी।
अच्छा लगा नजारा इसलिए तस्वीर निकाली थी।.