हाँ सच में हमने, बहुत तरक्की कर ली।खुद की तरक्की की चाह में,न जाने कितने प्राणियों की खुशियाँ छीन ली।।
स्वार्थ के मद में,हम अंधे हो गए हैं,प्रकृति का विनाश कर,हम भौतिकता में जी रहे हैं।