शहर के रंग
चुंधियाई हैं आंखें देखकर
शहर के अजब ही ढंग।
हर और बिखरा पड़ा है
अलग चटक ही रंग।
चौक चौराहे पर खड़ी
भीड़ बहुत ही भारी है ।
मारामारी मची हुई है
धक्का-मुक्की लाचारी है।
गगनचुंबी देख इमारत
हमने अपनी टोपी संभाली।
अपने अंतस के छोटे से
गांव की छवि छुपा ली।
आपाधापी मची हुई है
वक्त नहीं है किसी के पास।
ठहर के दो पल बातें कर लें
दिल की बची हुई है आस।
समंदर के खारे पानी की नमी
दिलों में ना उतर जाए।
देख परख कर लोगों से मिलें
दिलों दिमाग से रिश्ते निभाएं।
जो रास्ते गांव से शहर की
ओर हमें ले आते हैं।
याद रखना एक पगडंडी
वापस गांव तक पहुंचाते हैं।
ऊंची अट्टालिकाओं,गहरे
समंदर से दिल भर जाएगा।
नदिया किनारे बाहें फैलाए
छोटा सा गांव याद आएगा।