इतना पुराना हो गया यह शहर ,
हर चीज नए में तब्दिल होने लगी।
नई और पुरानी।
पुराने की नींव पर रखी, कंक्रिट
से भरी गगन चुम्बी अट्टालिकाओं
का शहर।
लुप्त हुआ सघन ,आकाश से। बातें करता,
पक्षियों को बसेरा देता विशाल वृक्ष।
हरियाली को पीछे छोड़ता , ये शहर।
मैं एक चौराहे पर खड़ा, देखता हूँ
जीवंत होता शहर, और हरेक चेहरों
पर हावी होता यह लुभावना बाजार।
आसमान के रूई से सफेद बादल
दिखते है धुंधले - धुंधले...
छाई है सबतरफ पेट्रेल, डीज़ल
की गुब्बार गाड़ियों से जो निकले।
फल , फूल खाकर पलते थे पक्षी
आज गगनचुम्बी इमारतों पर आ
चुगते है दाना, खिड़कियोंमें हैंछुपते।
लोग भी नहीं बचे , कुछ जो इसके
पुराने पन के थे साक्षी।
इसके पुरानेपन की नविनता में
खुद हो गए पुराने।।