कहां गये हरे-भरे वृक्ष
संजीवनी जीवनदायिनी
शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण
के संवाहक...
विकास के नाम पर
बसा ली कंक्रीटो की नगरी
जिसमें बसते हैं लोग
चारो ओर अपार्टमेंट की धूम
दिन दूनी रात चौगुनी
पैसा कमाने का होड़
कोई नहीं किसी से कमतर
वाह रे इंसान.. कितनी
चालाकी से करता
प्रकृति का दोहन
ईट पत्थरों से लिया जोड़
बड़ी बड़ी बिल्डिंगे
शुद्ध वायु स्वच्छ जल
का भी निकालो स्रोत..