ये तपती जलती सड़कें
हमें आज कहाँ ले आईं
धूप में जले जो पाँव
तो शहर में ढूँढतें हैं गाँव
ऊँची इमारतों की भीड़ में
हरियाली नहीं देती दिखाई
हैं गर्म हवा के थपेड़े
खो गई शीतल पुरवाई
अब भी अगर जो हम न ठहरे
वक्त रहते अगर न संभले
तब न ये बादल बरसेंगे
बूँद बूँद को हम तरसेंगे
शहर में होगा इक गाँव बसाना
होगा फिर से वृक्ष लगाना
इस दौलत को है हमें बचाना
न खाली हो धरती का खज़ाना