नाक सिकोड़ें सारे बच्चे, जब देख हरी सब्जी को।
कुंदरून, तुरई, बैंगन, करेले और भिंडी को।।
सभा बुलाई सब्जी दल ने, कुछ अब तो करना होगा।
इन बच्चों की खातिर हमको, रूप नया धरना होगा।।
ध्यान-मनन सब्जी ने करके, उपाय निकाला।
खूब सँवर थाली में बैठीं, अद्भुत अंदाज निराला।।
देख बगीचा थाली अंदर, बच्चे मारें किलकारी।
लगीं सब्जियाँ मन को भाने, माँ रोज बना फुलवारी।।
गीता चौबे गूँज
राँची झारखंड