शिमला ,
हे अहिंसा के महान गांधी पुजारी,
देश में कैसी आ गई, लाचारी ही लाचारी।
हिंसा ही हिंसा, बलात्कार और व्यभिचार,
करुणा और लज्जा से मर गई नारी बेचारी।
बापू तुम होते तो शर्म से गढ़ जाते,,
देख हाथरस की मनीषा पर टूट पडे बलात्कारी।
काट दी सत्य कहने मनीषा की जुबान,
तोड़ दी उसकी रीढ़, दर्द से चीखती रही बेचारी।
बापू तुमने क्या सोचा था,और क्या हो गया ये देश,
अहिंसा की लाठी भी बेसहारा हुई बेचारी।
टूटी नही है रीढ़ अबला बच्ची और नारी की,
टूट गई रीढ़ समाज की,अपमानित हुई अस्मिता सारी।
कभी निर्भया, कभी प्रियंका,कभी हाथरस की मनीषा।
जला दी जाती हैं,मार दी जाती हैं सरे आम बेचारी।
बापू तुम होते तो शर्म से मर जाते,
खुले घूम रहे, बलात्कारी,व्यभिचारी।
गांधी बापू चीत्कार कर रही नारी देश की हमारी,
तोड़ दो लाठी से व्यभिचारियों की मर्दानगी सारी की सारी।
बापू, प्रणाम करती हैं अबला देश की सारी,
सरे आम दे दो फांसी इन्हें,
नस्ल ही खत्म हो जाये बलात्कारियों की सारी की सारी।
फिर निडर हो विचरण कर सके,
देश की सुंदर, सुशील,न्यारी नारी।