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कविता

राम

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राजीव डोगरा | October 15, 2021 05:35 PM

कांगड़ा,

राम-राम करते हो
तुम रावण बनने के
लायक भी नहीं।
ज्ञान-ज्ञान करते हो
तुम अज्ञानी बनने के
लायक भी नहीं।
ध्यान-ध्यान तुम करते हो
तुम ज्ञान के
लायक भी नहीं।
स्वयं को न जाना
न ही पहचाना कभी
फिर भी महाज्ञानी
बने फिरते हो।
राम तो कण-कण में रमते है
फिर भी तुम
क्षण-क्षण पाप कर्म
करते फिरते हो।

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