शिमला,
हिमाचली पर्वतीय क्षेत्र है और यह प्रदेश विभिन्न मनोरम पर्यटक स्थलों से भरपूर है अगर मैं खासतौर पर शिमला की बात करूं तो शिमला में 25 दिसंबर और नए साल के उपलक्ष्य में पर्यटको की संख्या सामान्य से अधिक बढ़ जाती है।
हालाँकि पर्यटन प्रदेश के मुख्य आय के स्रोतों में से एक है, बहुत से कारोबारियों की आजीविका पर्यटन पर ही निर्भर करती है अगर मैं राजधानी शिमला की बात करूं तो शिमला और आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन का व्यवसाय आय का महत्व पूर्ण स्त्रोत्र है किंतु पर्यटन के साथ-साथ कुछ समस्याओं के बारे में भी हमें ध्यान रखना पड़ेगा जैसे कि यह पर्वतीय क्षेत्र पहले भी सॉलिड वेस्ट खासतौर पर प्लास्टिक के कचरे की समस्या के साथ बहुत अधिक जूझ रहा हैi पिछले कुछ दशकों में हमारे हिमालय क्षेत्र में पर्यटकों का आवागमन अधिक बढ़ा है ,और पर्यटन के कारण 8.4 मिलीयन टन ठोस कचरा हर वर्ष उत्पन्न होता है जो कि बहुत बड़ी समस्या है और इस कचरे का निष्पादन करना भी एक बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। प्लास्टिक के कचरे की समस्या के बारे में देखें तो प्लास्टिक की बोतल, चिप्स बिस्किट्स या अन्य खाद्य पदार्थों में उपयोग किया जाने वाला प्लास्टिक पर्यटक स्थलों में प्रदूषण का एक मुख्य कारण है I प्रदूषण की दर् खास तौर पर पर्यटको के आने से और बढ़ जाती है इस बारे में सही आंकड़ों का आकलन करना कठिन है किंतु यह वस्तुतः गंभीर विषय है I हमारे पर्यावरण में खास तौर पर पानी के स्रोतों में भी प्लास्टिक की जमावट होने के कारण जल धाराएं रुक जाती हैं जिस कारण भूस्खलन और भूमि कटाव भी होने लगता है I प्लास्टिक का कचरा स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को भी नुकसान पहुंचाता है क्योंकि यह पर्यावरण में बहुत आसानी से सड़ने योग्य नहीं होता हैI
अगर हम पूरे हिमालय क्षेत्र के बारे में बात करें तो हमारे देश का लगभग 16.2% भूभाग हिमालय क्षेत्र से बना है और 30 से 50% जल स्त्रोत्र इसी भूभाग में बर्फ के पिघलने से बनता है। हमारे मैदानी क्षेत्रों में जल और प्राकृतिक संसाधन हमारे हिमालय क्षेत्र पर ही निर्भर करते हैं। अगर इस क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाएगा तो इसका सीधा प्रभाव हमारे देश अपितु पूरे विश्व के ऊपर पड़ेगाI हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हिमालय क्षेत्र में किसी भी प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण को रोके और इस विषय में सतत प्रयास कदम उठाएं। हमें बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है ताकि हम पर्यटको और स्थानीय लोगों को प्लास्टिक की समस्या के बारे में बता सके और पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में हम एक नई सोच पैदा कर सकें। इस प्रकार व्यक्तिगत और प्रशासन के एकजुट प्रयासों से हम समाज में सॉलि़ड वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में योजनाबद्ध तरीके से काम कर सकते हैं।
अध्ययन की एक प्रमुख सिफारिश है कि भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में ठोस कचरा प्रबंधन (Solid Waste Management) में सुधार के लिए एक व्यवस्थित और चरणबद्ध दृष्टिकोण की आवश्यकता है I