कुपोषण पोषण की एक ऐसी स्थिति है जिसमें ऊर्जा, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की कमी या अधिकता (या असंतुलन) ऊतक और शरीर के रूप (शरीर के आकार और संरचना) कार्य और नैदानिक परिणाम पर औसत दर्जे से प्रतिकूल प्रभाव डालती है। एक आहार जो एक या अधिक पोषक तत्वों की स्वस्थ मात्रा में आपूर्ति नहीं करता है, कुपोषण का कारण बनता है।
सन 2015 के बाद से भूख और कुपोषण में वृद्धि हुई है, इस वर्ष लगभग 795 मिलियन या 10.6%, के पास अल्पपोषण था। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में पाया गया है कि 2020 में दुनिया की नौ में से एक या लगभग 820 मिलियन लोगों में भूख की स्थिति में थे। ये वृद्धि आंशिक रूप से चल रहे कोविड-19 महामारी से भी संबंधित है और साथ ही वर्तमान भोजन और स्वास्थ्य प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर करती हैं। कोविड-19 महामारी ने खाद्य असुरक्षा और बढ़ती भूख में बहुत योगदान दिया है I
जबकि लॉकडाउन से संबंधित कम शारीरिक गतिविधि के कारण अधिक वजन और मोटापे में भी वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि महामारी के कारण मध्यम और गंभीर परिणाम आ सकते हैं और पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज में कमी के परिणामस्वरूप अकेले 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाली सभी मौतों में से लगभग आधी मृत्यु अल्पपोषण के कारण होती हैं । कुपोषण बच्चों को सामान्य संक्रमणों से मृत्यु के अधिक जोखिम में डालता है, ऐसे संक्रमणों की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ाता है, और स्वस्थ होने में देरी करता है। भारत में 46.6 मिलियन अविकसित बच्चे हैं, जो वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया के कुल बच्चों का एक तिहाई है। भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु का लगभग आधा हिस्सा कुपोषण के कारण है। कोई भी देश कुपोषण के मुद्दे को दरकिनार कर आर्थिक और सामाजिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता ।
भारत में बाल कुपोषण के संकट को अक्सर गरीबी, असमानता और भोजन की कमी जैसे ऐतिहासिक कारण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। हालांकि, समान ऐतिहासिक, सामाजिक संरचना और तुलनीय प्रति व्यक्ति आय वाले देशों ने हमारे देश से बेहतर प्रदर्शन किया है।
भारत ने 2017 में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच पोषण में सुधार के लिए एक प्रमुख राष्ट्रीय पोषण मिशन, पोषण अभियान शुरू किया। संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals SDG) को पूरा करने के उद्देश्य से कार्यान्वित की हैl इसका मुख्य उद्देश्य भूख को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना और बेहतर पोषण क्या दी है।
शोध बताते हैं कि भारत में पोषण संबंधी समस्याएं न हो तो औसतन व्यय को काफी हद तक बचाया जा सकता है l अध्ययनों से पता चलता है कि भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4 प्रतिशत तक इसी कारण से खो देता है और उत्पादकता का 8 प्रतिशत तक बाल कुपोषण के कारण व्यय हो जाता है ।
कुपोषण को कम करना सतत विकास लक्ष्य 2 (Sustainable Development Goals or SDG2) "जीरो हंगर" का प्रमुख हिस्सा है, जिसमें कुपोषण के लक्ष्य के साथ-साथ कम पोषण और अवरुद्ध बाल विकास को कम करना है। विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Program, WFP) के अनुसार 135 मिलियन लोग तीव्र भूख से पीड़ित हैं, मुख्य रूप से मानव निर्मित संघर्षों, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मंदी के कारण है। तीव्र भूख से पीड़ित लोगों की संख्या कोविड महामारी के चलते दोगुना हो सकती हैl इस विषय में समाज के सभी अंगों को मिलकर काम करना होगा । व्यक्तिगत रूप से भी इस बारे में पहल की जा सकती है भोजन को व्यर्थ न करें। एक आंकड़े के हिसाब से हमारे देश में लगभग 7.5 टन खाना हर रोज व्यर्थ हो जाता है इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि हम कितनी जनसंख्या का भोजन हर रोज गंवा देते हैं ।भारत में उत्पादित भोजन का लगभग 40 प्रतिशत हर साल खंडित खाद्य प्रणालियों और अक्षम आपूर्ति श्रृंखलाओं के कारण बर्बाद हो जाता है यह आंकड़े खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization or FAO) द्वारा अनुमानित किए गए हैं। यह वह नुकसान है जो भोजन के उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही हो जाता है।
इस प्रकार हमें कुपोषण के लिए खाद्य पदार्थों के सही प्रबंधन के बारे में भी सही दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि हम इस गंभीर समस्या से निपट सके। सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों को भी इस विषय में ध्यान देने की आवश्यकता है। अभिभावकों को भी अपने बच्चों के खान-पान का उचित ध्यान रखना चाहिए व अधिक से अधिक घर में बने भोजन का उपयोग करना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जंक फूड को अधिक प्राथमिकता न मिले। अच्छे और संतुलित आहार को अपने जीवन शैली में शामिल करना चाहिए।