आनी,
लगभग 10 हजार की आबादी बाले उपमण्डल मुख्यालय आनी के बजूद पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।यहां के कोटनाला,व माशनू नाला में भारी भूस्खलन से अति संवेदनशील हो चुकी दलड़ल युक्त भूमि कभी भी टूटकर अपने रौद्र तांडव से आनी कस्वे के बजूद पर कहर ढा सकता है।हालांकि कस्वेवासी इस संभावित खतरे से पूरी तरह अनभिज्ञ है,लेकिन अगर आनी के पूर्व इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए ,तो इतिहास गवाह है कि आनी कस्वे पर कुदरत पूर्व में दो वार अपना कहर ढा चुकी है,जिसमें आनी का पूरा बजूद दफन हो गया था।बाबजूद इसके लोग कस्वे में नदी नालों से सटकर अपने रिहायशी मकान वनाने में जुटे हैं।
पांच पंचायतों के अधिकार क्षेत्र से घीरा आनी कस्वा, एक मुख्य खड्ड जलोडी सहित तीन अन्य नालों ,देहुरी खड्ड,भैरड नाला नाला तथा खोबड़ा नाला की गोद में स्थित है,।ये खडें व नाले भारी बारिश के कारण कभी भी रौद्र रूप धारणकर आनी कस्वे पर कहर ढा सकते हैं।कस्वे के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1977 में यहां आई भयंकर बाढ़ ने आनी मेँ भारी तबाही मचाई थी,औऱ कस्वे का अस्तित्व भी मिट गया था।उस समय के बुजुर्ग उस ख़ौफ़नाक मंजर को आज भी नहीं भूले हैं,जबकि वर्तमान पीढ़ी उस खतरे से पूरी तरह अनभिज्ञ है।हालांकि कुछ बुद्धिजीवी लोग आनी पर मंडरा रहे खतरे को लेकर चिंतित हैं और इसके बचाव के लिये प्रयासरत हैं, जिसके तहत यहां खड्डों तथा नालों के दोनों ओर कुछ क्रेट वाल भी विभिन्न योजनाओं के तहत लगवाए गए हैं,मगर अभी तक ऐसी कोई बड़ी योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया है,जिससे कि आनी कस्वे पर मंडरा रहे संभावित खतरे से बचा जा सके।
इस वर्ष रेनी सीजन आगे बढ़ने और अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होने से क्षेत्र में भूमि दलदल होने लगी है,जो कहीं न कहीं भूस्खलन का कारण बनकर कहर ढा रही है।
बहरहाल आनी कस्वे पर कोटनाला,माशनू नाला के रूप में मंडरा रहे खतरे की घण्टी कब बज जाए,ये सम्भावित अनहोनी अभी तक भविष्य के गर्भ गृह में है।