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देश

राष्ट्रीयता पर भारी निज स्वार्थ और अनैतिकता,करोना संकट के समय विचारणीय|

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संजीव ठाकुर | January 15, 2022 04:36 PM

 रायपुर,

करोना का नया भयनक रूप ओमिक्रोन आगया है,पूर्व में  करोना की दुसरी लहर में मानवता पर संकट के जंजाल ने डेरा डाला था| ,चंद डॉक्टर सांसों और लाशों का व्यापार करने जुट गए थे,पैसों की अंधी हवस में डूब चुकी थी मानवता, ख़त्म हुई शर्म और हया|  करोना की दूसरी लहर देश के नागरिकों की जान सांसत में डाले हुए थी , वहीँ देश में मूलभूत सुविधाओं की बेहद कमी हो रही थी, संक्रमित लोग दवाइयों,अस्पताल,बिस्तर,ऑक्सीजन,वेक्सिन वेंटीलेटर और मजदुर वर्ग दो समय के खाने के लिए तरस रहे थे और कुछ लोग नैतिकता को ताक में रख दवाइयों,किराना सामान और अन्य आवश्यक सामग्री की कालाबाजारी में लगकर काला धन कमाने में जुटे हुए थे,निजी अस्पताल के मालिक अपनी व्यावसायिक प्रतिबद्धता, नैतिकता को छोड़ मरीजो से बेहिसाब पैसा वसूलने में लगे रहे ,लोगो ने आपदा को अनैतिक अवसर मानकर देश को चारागाह समझ लुट का जरिया बना लिया था | अब न तो शर्म शेष है और ना ही राष्ट्रीयता की भावना ही,पहले के समय में तो स्वतंत्रता संग्राम सामाजिक और नैतिकता की शक्ति और दम ही लड़ा गया था,सबने बहुमूल्य आज़ादी पाई थी|उसके पश्चात भारत में शनै शनै नैतिकता के भौतिकता ने जनमानस के साथ राजनीति में भी पैर पसारना शुरू कर दिए थे,फिर दौर शुरू हुआ बेईमानी और अनैतिकता का, अब स्तिथि बड़ी विकट है पूरे राष्ट्रिय परिदृश्य में नैतिक और इमानदार राजनीतिज्ञ उँगलियों में गिनने जैसी परिस्तिथियों में आ गये है|  शुरू से ही युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे स्वामी विवेकानंद ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में सदैव राष्ट्रीय चरित्र और वहां के निवासियों  की व्यक्तिगत आचार संहिता  महत्वपूर्ण रही है| किसी भी राष्ट्र के निर्माण किसी के व्यक्तिगत योगदान अथवा प्रयास का महत्व नहीं होता| यह संपूर्ण राष्ट्र की जनता द्वारा समेकित उद्यम से ही परिपूर्ण हुआ है| किसी भी देश में  वहां की जनपद की जनता के द्वारा ही  समृद्ध, सुसंस्कृत,  शिक्षित समाज तथा वातावरण का निर्माण हुआ है| स्वतंत्रता काल में भारत के कुछ जुझारू योद्धाओं ने राष्ट्रीय चरित्र को महत्त्व देते हुए राष्ट्र प्रथम के आव्हान पर अपनी मातृभूमि पर सब कुछ न्योछावर किया| ऐसे महान लोगों में मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, भगत सिंह,सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, खुदीराम बोस, ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर यह साबित कर दिया कि उनके लिए राष्ट्रीय चरित्र और देशभक्ति सर्वोपरि है| और उन महान सपूतों के प्रयासों के पश्चात स्वतंत्रता  प्राप्ति के लिए महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई, पटेल, सरोजिनी नायडू और ना जाने कितने देशभक्तों ने अथक प्रयास कर स्वतंत्रता प्राप्त की| जिसका परिणाम है कि आज हम स्वतंत्र भारत में सांसे ले रहे हैं| पर क्या भारत  मैं स्वतंत्रता के बाद मैं व्यक्तिगत आचार् संहिता  और राष्ट्रीय चरित्र की भावना का कोई महत्व रह पाया है| कुछेक अपवाद को छोड़कर शेष भारत के राजनीतिक चरित्र को यदि आँका जाए तो स्वतंत्रता के बाद अब तक न जाने कितने राजनेता आए और चले गए पर जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, आचार्य कृपलानी, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी के बाद अब नरेंद्र मोदी ही ऐसे गिने-चुने नेता है जिन पर भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत आचरण पर कोई आक्षेप या आरोप नहीं लगा है| राजनेताओं में व्यक्तिगत आचरण संहिता लुप्त होती दिखाई दे रही है|अधिकांस  प्रदेश के  मंत्री, मुख्यमंत्री किसी ने किसी आरोप में लिप्त  दिखाई देने लगें है |राष्ट्रीय चरित्र की भावना यदि वहां की जनता में राष्ट्र सर्वोपरि के  उद्देश लेकर भावना ना हो, तो  देश का भविष्य बहुत ज्यादा सुरक्षित नहीं माना जा सकता है | द्वितीय  विश्व युद्ध के बाद जापान का हर व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत  आचार संहिता को मानते हुए राष्ट्र चरित्र तथा राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हुए राष्ट्र निर्माण में लग गया था  और उसने बहुत जल्द अपने राष्ट्र को एक समृद्ध शक्तिशाली एवं अनुशासित राष्ट्र के रूप में स्थापित कर लिया| चीन के नागरिकों के लिए बहुत कुछ अनुशासित राष्ट्र कहे जाने के उदाहरण मिलते हैं| चीन जनसंख्या की दृष्टि से विश्व प्रथम स्थान रखता है| इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बाद भी चीन गरीब राष्ट्र नहीं है| उन्होंने अपनी आचार संहिता निर्मित कर राष्ट्र को प्रथम स्थान देते हुए आर्थिक रूप से अपने को समृद्ध  और औद्योगिक क्षेत्र में विश्व में स्थान बनाया , जापान, चीन, कोरिया तथा सिंगापुर जैसे राष्ट्र के नागरिक अपने आप को केवल साधारण  नागरिक न  मानकर, राष्ट्र को प्रथम स्थान देते हुए, राष्ट्र निर्माण में एवं राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने में अपना लगातार अनुशासित योगदान देने में लगे हुए है| इन देशों का कुटीर उद्योग से लेकर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग तथा अन्य व्यापार में  विश्व में कम लागत की वस्तु बनाने में सर्वोपरि है| यूरोपियन देश उपभोक्ता वस्तु बनाते  तो हैं, पर उन वस्तुओं की कीमत आम नागरिकों की पहुंच से बाहर होती है| ऐसे में कम कीमत की जापान, कोरिया और चीन की वस्तुएं पूरे विश्व में  छाई हुई है| भारत देश के परिप्रेक्ष्य में यह सर्व विदित है कि किसी देश की समृद्धि तथा सुसंस्कृति उस देश की शिक्षा जागरूकता तथा नागरिकों की सशक्त मेहनत के बल पर  स्थापित होती है| पर अफसोस कि भारत की जनसंख्या के सन्दर्भ में राष्ट्र निर्माण की मूल आधारशिला में शिक्षा का प्रतिशत  समग्र रूप से अत्यंत कम है| और अशिक्षा, अंधविश्वास किसी भी देश की समृद्धि और विकास के लिए सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई है| वैश्विक स्तर पर जनसंख्या को एक बड़ी समस्या मानने वाले लोग कहते हैं कि,भारत अपनी जनसंख्या को कमजोरी ना मानकर शक्ति  मानता है| यह केवल यूरोपीय देशों के व्यापारिक दृष्टिकोण से अपने हित साधने  वाले राजनेता भारत की जनसंख्या को एक बाजार की  ताकत बोल बोल कर भारतीय जनमानस को बरगलाने का काम कर रहे हैं| पर भारतीय राजनीति में राजनेताओं को अपनी व्यक्तिगत आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण का प्रयास कर आमजन को इसका महत्व समझा कर उन्हें इस बात की गहरी शिक्षा दी जानी चाहिए| भारत देश में राष्ट्रीय चरित्र और व्यक्तिगत आचार संहिता को मानने वाले बड़े-बड़े महापुरुषों का उदाहरण देकर भारतीय जनमानस को उनका पाठ अवश्य पढ़ाना चाहिए| दिल्ली से लेकर राज्यों में राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गजों ने व्यापक आर्थिक भ्रष्टाचार तथा व्यक्तिगत आचरण कर वातावरण को प्रदूषित कर रखा है| किसी व्यक्ति विशेष के बारे में बात ना कर समग्र रूप से भारत और व्यक्तिगत आचरण संहिता की अत्यंत आवश्यकता है| हिंदुस्तान की जनता एवं शासन प्रशासन में बैठे लोगों को देश के हित तथा सर्वांगीण विकास के लिए राष्ट्र प्रथम तथा राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत आचरण संहिता का उदाहरण स्वयमेव सामने आकर पेश करना चाहिए| जिससे देश की  आम जनता इन उदाहरणों से कुछ सीख सके किंतु आज की राजनीति में बहुत कम ऐसे पाक साफ लोग ही उदाहरण पेश कर पा रहे हैं|यह भी इस देश में  विसंगति है कि  जो पाक साफ रहना भी चाहते हैं या ईमानदार चरित्र के   पोषक हैं उन्हें बेईमान  लोग घेरकर  सामाजिक परिदृश्य से दूर धकेलने के प्रयास में रहते हैं| पर आज देश में  समग्र रूप से राजनीतिज्ञों से लेकर आमजन को व्यक्तिगत आचार संहिता एवं राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करना चाहिए| तब जाकर  देश सुसंस्कृत, शिक्षित और शक्तिशाली राष्ट्र बनकर विश्व में अग्रणी स्थान  प्राप्त कर सकेगा|

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