ऐ चाँद
ऐ चाँद बता क्यूँ रोज़ मुझे
इतना तू सताता है
कभी छुप जाता है बदली में
कभी हल्की सी झलक दिखलाता है....
गुमसुम उदास सी रातों में
जब सो जाती है दुनिया सारी
देख मुझे तन्हां तू क्यूँ
तारो संग हँस हँस बतियाता है
जब झरती हैं बूँदें ओस की
दिल विरह ताप से जल जाता है
मेरे मन के सूने आंगन में
चाँदनी संग क्यूँ उतर आता है
मुझे शीतल किरणों की चाह नहीं
चाँदनी दिखाती अब राह नहीं
मायूसियों में डूबा देख मुझे
क्यूँ हौले से मुस्काता है
वो बेखबर संगदिल मनमीत मेरा
जाने खोया किस दुनिया में
संदेश सुना दे बेकल मन को
इक बार तेरा क्या जाता है
ऐ चाँद बता क्यूँ रोज़ मुझे
इतना तू सताता है
कभी छुप जाता है बदली में
कभी हल्की सी झलक दिखलाता है...
कभी हल्की सी झलक दिखलाता है....
रीना सिन्हा ( स्वरचित )
जमशेदपुर , झारखंड