सन्नाटे में दिल को छूने
हाथ बढ़ाया है क्या तूने।
बहुत दिनों पे आई चिट्ठी,
दिल के दर्द हुए हैं दूने।
इक डोली क्या गांव की उट्ठी,
पनघट सारे हो गए सूने।
हवा चूम के आई उसको,
बता दिया है इक ख़ुशबू ने।
सागर तट पर लहरों से मिल,
चित्र बनाए हैं बालू ने।
निगल लिया है कई घरों को,
आग से मिलकर इस धू-धू ने।
दृश्य ख़ौफ़ का देख जीभ को,
क़ैद कर लिया है तालू ने।
सुख के दिन तो दिखे नहीं पर,
दुख के दिन हो गए हैं दूने।
मैं तेरे इन सुर्ख़ लबों को,
चाहूं छूना, दोगे छूने ।
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