विद्यालय की ओर
हुआ सवेरा जागो जी ,
आलस्य-प्रमाद त्यागो जी ,
जल्दी-जल्दी बस्ता लेकर ,
विद्यालय की ओर भागो जी ।
प्रातः भानु प्रगट हुए ,
कमल-वृंद विकस गए ।
मुर्ग़ा कहता कुकड़ू-कूँ ,
जाग जा ,अब सोना क्यूँ ?
नीड़ छोड़ खग-वृंद भागे ,
उन्मुक्त-गगन के सैर-सपाटे ।
कलरव कर आपस बतियाते ,
नन्हे विद्यालय सरपट भागे ।
रंग-बिरंगी तितली उड़ती ,
भँवरे फूलों पर गुनगुन करते ।
बस्ता देखे है राह तुम्हारा ,
पीठ पर लादे सरपट भागते ।
रंग- बिरंगे तितली सम लगते,
नन्हे-नन्हे कदम जब धरते ।
विद्यालय के उत्तम विद्या-बोल ,
पीना बनाकर शर्बत-घोल ।
पढ़ाई-लिखाई,खेल-व्यायाम ,
बनाता तुम्हें बलिष्ठ-विद्वान ।
समय की प्रतिबद्धता और अनुशासन,
सीखाते तुमको आनन-फानन ।
विद्यालय तुम्हें है राह दिखाता ,
अच्छा-सच्चा इंसान बनाता ।
मन लगाकर यहाँ जो पढ़ता ,
ध्रुवतारा सम अंबर में टीकता ।
हुआ सवेरा जागो जी ,
आलस्य-प्रमाद त्यागो जी ।
जल्दी-जल्दी बस्ता लेकर,
विद्यालय की ओर भागो जी ।