कविता
कह दे इसे दीवानगी या हमारी रवानगी ; सुनीता श्रीवास्तव, सब्बू
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ब्यूरो हिमालयन अपडेट 7018631199 | March 03, 2022 09:35 PM
सुनीता श्रीवास्तव, सब्बू
कह दे इसे दीवानगी या
हमारी रवानगी
थामी हाथ में कलम
बस है ठानी
एक गीत, जज्बात, व्यथा
या एक कहानी।
अब हम अपनी बात
खुद लिखेंगे
जैसे चाहे वैसे जिएंगे
न जी पाएगें अगर
मर्जी के मुताबिक, न सही
तो उस ने जी पाने की
वजह हीं लिखेंगे।
हम खुद लिखेंगे चूल्हे का धुंआ
सर का आंचल और बटलोही में पकती दाल के बीच
नन्हे की पिपिआने की आवाज और...
ममता को ठिकाने लगा कर भूखे बच्चे को पीट देने की वेदना
हम खुद लिखेंगे अपनी उगाई फसलों की खुशबू।
छुटे घर के हर काम को करते हुए आए दिन ऑफिस जाने की ज़िद और व पीडा़ भी हम ही लिखेंगे।
लिखेंगे हम खुद की जिंदगी के
कायदे , दौड़ते- दौड़ते भी
चुभती स्मृतियों की पगडंडीयों पर छुट गई परछाइयां, और
मुस्कुरातहट के पीछे कितनी चींखें
यह भी हम लिखेंगे।
न सही सुंदर, न सही इतिहास में दर्ज होने लायक
फिर भी हम लिखेंगे अपने बारे में
और खुद करेंगे अपने हस्ताक्षर
अपनी रचनाओं पर....
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