राधा कृष्ण की होली
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कृष्ण कन्हैया खेलें होरी,
करते राधा से बरजोरी।
रंग गई है देखो कैसे,
चुनरी थी राधा की कोरी।
मारी पिचकारी भरभर के,
चहुँदिस कैसे रँग हैं छलके।
डूबे हैं मस्ती में कैसे,
गोप गोपियाँ सब मथुरा के।
कहे राधिका सुनो कन्हैया,
देख रही हैं जसुमति मैया।
करूँ शिकायत उनसे जाकर,
नाजुक मेरी छोड़ कलैया।
नटखट अपने कृष्ण मुरारी,
सँग में हैं वृषभानु दुलारी।
मंत्रमुग्ध से देख रहे हैं,
गोकुल के सब नर अरु नारी।
रूणा रश्मि 'दीप्त'
राँची , झारखंड