दोहा-मुक्तक - माँ दुर्गा
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माता से विनती करूँ, मेरी है यह भक्ति।
विपद हरें देवी सभी, यह देवी की शक्ति।
क्षणभंगुर इस जगत में, नश्वर है यह गात-
पूर्ण कर्म जिसने किया, उसे मिली तब मुक्ति।
दुर्गे माँ नवरात्रि में, आतीं हैं हर बार।
धरती की संतान को, देतीं प्यार-दुलार।
विपदा सबकी दूर हो, माता करें उपाय-
सभी भक्त करते यही, माता से मनुहार।
— गीता चौबे गूँज
राँची झारखंड