द्वारों पर तोरण सजे ,बाजे ढोल मृदंग ।
आई शेर सवारिणी खुशियाँ लाई संग।।
आई है नवरात्र , ढोल बाजे शहनाई ।
आई दुर्गे -मात , संग है खुशियाँ लाई।।
द्वार खड़ी करजोड़ , भक्तिभाव माँ दुर्गे,
कर दे बेड़ा पार , दुःख -हरणी जगदम्बे।।
राग मेघ-मल्हार ने , छेड़े सुर-लय तान।
बसंत-बयार झूमते ,मैया आवन जान ।।
दुर्गे -माता मैं तुझे , पाँव पड़ूँ कर -जोड़ ।
दुखियों के संसार से ,मुँह लेना ना मोड़ ।।
चरण पखारूँ नित्य मैं, लेकर गंगा -नीर ।
इस पापी संसार की, हर लेना सब पीर।।
तुझसे माँगु मै सदा,जला ज्योत यह दीप ।
जीवन अमूल्य है सभी,ज्यों मोती है सीप ।।
थाल सजाती हूँ लिए, खील-बताशे भोग ।
दूर करो सब जीव के , दुःख-पुरानी रोग ।
लाली -चुनरी डार के ,साज करूँ शृंगार ।
रक्त-पुष्प चरण में,जवा-कुसुम का हार ।।
झोली -खाली ले सभी, बैठे तेरी छाँव ।
बुरे-कर्म से मुक्ति दे,स्थान मातु निज पाँव।।
धर्म विनाश कगार पर , माता लेती जान ।
शाप-मोक्ष उद्धार को ,आती मन में ठान ।।
काली तू श्मसान, आदि शक्ति तू देविका।
देख रही संतान,जन्म-मरण जीवन लेखा।
नश्वर यह संसार , कौन शाप-उद्धारिणी ।
आप हरोगी मात ,चण्ड-मुण्ड विनाशिनी ।
जीव-शक्ति आधार,आदि-शक्ति जगत जाने।
पूर्ण वृहत -ब्रह्मांड ,चर- अचर तुझको माने।
महिष -असुर संहार, कर के तू महारानी।
पतित करे उद्धार , पापी मुक्ति ब्रह्माणी ।