खोकर इस बार तुम्हें, मैं फिर हारा
जन्मों का है बंधन,मिलते रहेंगे हम
अगली बार मिलूं जब फिर तुमसे
मेरी जीवन बगिया महका देना
हँसते हुए खिलती कली सी तुम।
मैं देखा करूं छुप-छुपके तुमको
तुम बस मंद-मंद मुस्का देना
दर्पण मस्ती में निहारा करे तुमको
मुस्काती बैठी रहना सामने तुम
श्रृंगार नहीं करना, है क़सम तुमको
ऐसे ही रहा करना,कांता किसलय तुम।
मैं हारा नहीं जग से लेकिन
मैं हारा किया तुमसे हरदम
मेरी हार को अगली बार
तुम हृदय में छुपा लेना
हार के सब कुछ अपना
तुम धनी बना देना मुझको
उस बार रुलाना नहीं मुझको
मैं आँसू कहाँ से लाऊंगा?