शिमला ,
मशोबरा के समीप धनैन एवं कुम्हाली गांव के समीप दो ऐसे पेड़ है जिसकी जड़ें उपर की ओर एवं तना भूमिगत होने के बावजूद भी ये पेड़ सूखे नहीं हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इन पेड़ों पर सामान्य पेड़ों की न केवल हरियाली है बल्कि इनके तने से नये पेड़ भी निकले हैं। ये पेड़ यहां की बहुमूल्य माने जाने वाली वन्य सम्पदा देवदार के हैं। लोगों की मान्यता पर विश्वास करें इससे प्राचीन एक पुरानी देव घटना है जिस कारण यह आश्चर्य देखने को मिल रहा है। कुम्हाली गांव में देवता साहिब का मन्दिर भी है जोकि इस पूरे क्षेत्र में स्थापित ग्राम्य देव है। इनका आशीर्वाद प्रतिवर्ष लोग लेते आये हैं। देव के गूर रहे युवा राजेंद्र भारद्वाज ने उल्टे गिरे पेड़ों के पीछे प्रचलित इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं। उनका कहना है कि मशोबरा के समीप पड़ने वाले क्षेत्र पर यहां के देव धांधी का प्रभाव है जिनकी दुर्गापुर के गांवों के देव से प्राचीन वैर रहा है। देवता सीप जब तीर्थ यात्रा पर गये तो उन्होंने देवता धांधी को इस क्षेत्र की रक्षा का कार्यभार सौंपा। सीप देव के बाहर जाने की खबर जब दूसरे शत्रु देव को लगी तो उसने इसे अच्छा अवसर माना। कोगी देवता के यहां देवदार के पेड़ नहीं होते थे वहां के देव ने सोचा कि सीप देव तीर्थ गये है ऐसे में वहां पर आक्रमण करके वहां से कुछ देवदार के पेड़ों को चुरा लिया जाये। देव ने जब दो तीन पेड़ उखाड़े ही थे कि यहां रक्षा के लिए रखे देव धांधी को इसका पता चला। दोनों में युद्ध हो गया जिसमंे धांधी देवता ने अपने आप को लोहे के ओलों की वर्षा से अपने सुरक्षित कर लिया लेकिन जब वहां का देवता के नाक में लोहे का ओला लगा और देवता की नाक कट कर भूमि पर गिर गयी। कोगी देव को पलायन करना पड़ा और भागते हुए यह देवदार के दो पेड़ उल्टे गिर गये और वहीं पर स्थापित हो गये। आज भी बाघी जुब्बड़ में लोहे के ओले स्थानीय भाषा में शरू की बारिश के निशान पत्थरों पर स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
जिसे कहा जाता है। जबकि एक पेड़ को अपने क्षेत्र को ले जाने में कामयाब हो गया। देवता धांधी ने एक बहुत बड़ा पत्थर देवता की ओर फैंका जोकि आज भी कोगी गांव में बिल्कुल सीधा खड़ा है। यह पत्थर बिल्कुल गिरता हुआ सा टेड़ा है पर यह गिरा नहीं है यह हैरानी की बात है। इसके बाद उस क्षेत्र में भी देवदार के वृक्ष उगने लगे। पुजारी राजेंद्र भारद्वाज का कहना है कि यह एक बड़ा आश्चर्य है कि बड़े से बड़े मूर्तिकार आज भी देव कोगी की नाक नहीं लगा पाये हैं। आज भी मूर्ति में जब नाक लगायी जाती है तो टूटकर नीचे गिर जाती है। उस युद्ध के पौराणिक इतिहास की जानकारी देने के लिए आज भी ये दो उल्टे पेड़ उस समय की साक्षी दे रहे प्रतीत होते हैं। धनैन गांव के समीप उल्टे पेड़ के नीचे देव सीप की स्थापना की गयी है। जिस पर लोग हर 6 माह में लोग पूजा अर्चना आदि कृत्य करते रहते हैं।