शिमला,
चौहान वंश की कुल देवी माता टौणी देवी का मंदिर लगभग 300 वर्ष पूर्व जब दिल्ली पर मुगलों का अधिपत्य हो गया तो उन्होंने राजपूतों की मां-बहनों पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया और राजपूतों को जनेऊ उतार कर धर्म परिवर्तन करवाने लगे तो चौहान वंश के 12 भाइयों ने इस पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र में शरण ली थी ताकि अपने धर्म व परिजनों की रक्षा कर सकें। उनके साथ उनकी बहन भी थी जिसे सुनाई नहीं देता था। परिवार के मुखिया ने बाकर कुनाह व पुंग खड्ड के केंद्र पर भवन की योजना बनाई मगर जिस स्थान पर आधारशिला रखी गई वहां पर खून की धारा निकलने पर सव अचंभित हो गए। इस पर कुल पुरोहित से मश्वरा लिया गया और उन्होंने इसके लिए घर की कुंवारी कन्या को दोषी बताया । घर की महिलाओं ने माता टौणी देवी पर आरोप लगाए जिस पर क्षुब्ध माता ने इस स्थान पर घोर तपस्या की और आषाढ़ मास के 10 प्रविष्टे को अंतध्र्यान हो गई । उसी की याद में उसके भाइयों ने यहां छोटे से मंदिर की स्थापना की जो कि आज भव्य रूप धारण कर चुका है। माता की याद में यहां हर वर्ष मेले का आयोजन होता है। नवरात्र में भी श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। माता टौणी देवी को सुनाई नहीं देता था इसलिए जब भी कोई मन्नत मांगता है तो वहां रखे पत्थरों को आपस में टकराता है और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
चौहान वंश की कुलदेवी
माता के दरबार में पंजाब हरियाणा, दिल्ली, राज्यस्थान, जम्मू कश्मीर व उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों से भी चौहान वंश के लोग दर्शन करने आते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि टौणी देवी का मंदिर 300 वर्ष पुराना है और यह चौहान वंश की कुल देवी है। यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु माथा टेकने के लिए आते हैं। यहां पर आने से हर आदमी की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां पर कई वर्ष से कमेटी काम कर रही है। श्रद्धालुओं को रहने के लिए हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।