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कहानी

जीवन भी तो एक यात्रा ही है : गीता चौबे गूँज

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गीता चौबे गूँज | February 03, 2022 01:16 PM
गीता चौबे गूँज


(रांची) झारखंड

यात्रा, एक अत्यंत ही रोमांचक अनुभव होती है मेरे लिए। साधन चाहे कोई भी हो, मेरे लिए यह हमेशा रोचक रहा है. कार यात्रा हो, बस यात्रा हो, ट्रेन यात्रा हो या विमान यात्रा हो...हमेशा एक नए अनुभव का एहसास होता है और यूँ लगता है जैसे यह मेरी पहली यात्रा हो।
इस बार की मेरी यह यात्रा ट्रेन की है। यहां हमे 2 फीट चौड़ी और 6 फीट लंबी बर्थ (सीट) मिलती है। यात्रा चाहे 2 घंटे की हो या 2 दिनों की... उतने समय के लिए यही हमारी दुनिया होती है। हमारी इच्छाएँ, आकांक्षाएं सब इसी के इर्द गिर्द सिमट जाती हैं और हम बड़े आराम से (यह हमारी सोच पे निर्भर करता है) इस सीमित समय को व्यतीत करते हैं।
इस यात्रा को हम गौर से और गहराई से देखें तो इससे हमे एक बड़ी सीख मिलती है, हमारे जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई हमारे सामने आती है।
मैं बड़े गौर से देख रही थी... 2 सीट आमने सामने। एक पर एक धनाढ्य, बहुत ही अमीर व्यक्ति। दूसरे पर एक साधारण सा इंसान (इसका अंदाजा सिर्फ़ पहनावे से मुझे लगा)।
ट्रेन के लिए, रेलवे स्टाफ़ के लिए दोनों एक समान। दोनों के लिए एक जैसा कंबल, एक जैसी चादर, एक जैसा तकिया और एक जैसा खाना.... कहीं कोई विषमता नहीं। एक निश्चित समय तक के लिए दोनों का एक दूसरे के प्रति समान व्यवहार, कहीं कोई विक्षेप नहीं। प्रेम और भाईचारा का सतत् प्रवाह....।
इस दृश्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मैं सोचने पर मजबूर हो गयी कि जब हमने अपने अहंकार को, अपने रुतबे को थोड़ी देर के लिए ही सही, दरकिनार कर दिया तो हमारा वो पल कितना सुखद, कितना खुशगवार रूप से व्यतीत हुआ। थोड़ी देर का सफर कितने आनंद से तय हुआ। तो क्यूँ न हम इस टिप्स को अपने जीवन के सफर के लिए आजमाएं!
हमारी ये जीवन यात्रा भी इसी तरह की है, है न? हमारे रचनाकार (भगवान्) ने हमे एक समान इस धरती पर भेजा... प्रकृति ने भी हमारे साथ एक सा व्यवहार किया... फिर हमारे बीच इतनी बड़ी खाई (अमीरी गरीबी की) क्यूँ और कैसे पैदा हो गई? ऊँच-नीच का अंतर क्यूँ आ गया हमारे बीच? किस बात का अहंकार पैदा हो गया हमारे अंदर?
किसी-न-किसी रूप में हम सभी इस बात को महसूस कर रहे हैं, हमारे पास इसे समझने का विवेक भी है, पर हम उसका उपयोग करना भूल गए हैं। हम भूल गए हैं कि एक दिन हमारी यात्रा समाप्त होगी और हम मंजिल (वापस अपने रचनाकार भगवान्) पर पहुच जाएंगे। हमारे ईश्वर के पूछने पर कि 'क्या यात्रा सुखद रही...?' हम सही जवाब नहीं दे पाएँगे।
तो चलिए, हम इसकी तैयारी कर लें। अपनी जीवन यात्रा को सुखद बनाने के लिए प्रेम, भाईचारा और सद्भावना का, समानता का आपस में संचार करें।
हम सबकी ही 'जीवन-यात्रा' मंगलमय हो....!


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