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कविता

लिए लिखनी हाथ में हूँ सोच रही मैं आज ; निर्मला कर्ण

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March 04, 2022 08:07 PM
निर्मला कर्ण


लिए लिखनी हाथ में हूँ सोच रही मैं आज
बनोगी क्या तुम सखी मेरे दिल की आवाज l

प्रथम नमन मां शारदे मिली जिनसे लेखन की शक्ति l
दूजे करूँ गुरु को नमन जिन्होंने सिखलाई शारदा भक्ति l
पुनः करूँ जननी का वन्दन जिनसे मिला यह जीवन है l
मैं हूं जिस की एक बूंद माँ मेरी वह गंगा पावन है l

नमन करूं मां मैं तुमको तुमसे जीवन का सार मिला l
तेरी गोदी के द्वारा मुझको जग का सारा अधिकार मिला l
तेरी मधुर कथाओं से छन ऊंच-नीच का ज्ञान मिला l
तेरी ममता के झूले में मुझको जग का सम्मान मिला l

तेरे ही द्वारा मां मैंने पाया जीवन का प्रथम ज्ञान l
तेरे मुख से मिली वर्जना भी लगती थी ल सूक्ति समान l
तुझसे ही सीखा मां सुख-दु:ख आते धूप छांव बनकर l
सुख की है यदि आस तो सह लूँ दु:ख को धीर धरकर l

ज्यूँ पत्थर को काट-छांट तब मूर्ति बनाई जाती है l
और सोना में तपा-तपा कर आभा लाई जाती है l
ऐसे ही जीवन में भी जब धूप-छांव आ मिलता है l
तब ही मानव जीवन भी स्वर्णिम आभा पा खिलता है l

तुमसे सीख लिए ले चली रचने मैं मां अपना संसार l
मेरे रस्ते में माँ तुम बिखेरती रही फूल सा अपना प्यार l
तुम सा बनने का प्रयत्न ही रहा मेरे जीवन का सार l
मेरी लेखनी से नमन तुम्हें मां यह भी तो तेरा उपहार l




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