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कविता

रंग दे मोहे गुलाल तेरे इश्क को;राधे मंजूषा

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ब्यूरो हिमालयन अपडेट 7018631199 | March 13, 2022 08:10 PM
राधे मंजूषा

रंगदे मोहे गुलाल

रंग दे मोहे गुलाल तेरे इश्क को ,,
जित देखू फिर तू मोहे दिख जाय।

रंग दिया यादों ने तेरी मुझको ऐसे,,
कभी आंसू कभी हँसी बन झलकता तू मुझमें अब जैसे।
कभी तन्हाई में मुस्कुराती हूं,,
कभी भीड़ में तन्हा खुद को पाती हूं।

रंग दे मोहे गुलाल तेरे इश्क को,,,
जित देखू फिर मोहे तू दिख जाय।।

नाराजगी,लड़ाई ,रूठना मनाना सब इश्क़ के बहाने है,,
दिल रोता है फिर पल पल तुझे याद के, कि ये सब सौदे इश्क़ के पुराने है।
रसिया तू है थोड़ा कृष्ण के जैसे गोपियां देख तू भी भागता उनके पीछे,,
मैं राधे सी ठहरी दिल में तू हैं बस बसता मानू तेरी हर बात अब आंखे मींचे।

रंग दे मोहे गुलाल तेरे इश्क को,
जित देखू फ़िर मोहे तू दिख जाय।

अधूरी सी हूं बिन तेरे ओ कृष्णा ,,
दिल में तू सदा तू अपने इस राधे को रखना।
पास ना रहे चाहे हम दोनों बस तुझसे ये ही है कहना,,
दिल से रूह में मेरी बस एक तू ही है और तू ही रहना।

रंग दे मोहे गुलाल तेरे इश्क को,,
जित देखूं फिर मोहे तु दिख जाय।

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