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कविता

कोई फर्क नहीं।

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राजीव डोगरा | March 19, 2022 05:53 PM

कांगड़ा,

कोई फर्क नहीं।

मैं कब हारा
मैं कब जीता
मुझे इससे कोई फर्क नहीं।

कौन अपना
कौन पराया
मुझे इससे कोई फर्क नहीं।

मैं क्यों रोया
मैं क्यों हंसा
मुझे इससे कोई फर्क नहीं।

कौन मेरा
कौन तेरा
मुझे इससे कोई फर्क नहीं।

क्या खोया
क्या पाया
मुझे इससे कोई फर्क नहीं

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