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धर्म संस्कृति

तीन गढ़ों के देवता शमशरी महादेव और टौणानाग की भावपूर्ण विदाई के साथ धोगी बूढ़ी दिवाली संपन्न

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हिमालयन अपडेट ब्यूरो | November 27, 2019 07:32 PM
 आनी,
 
देशभर में जहां दीवाली पर्व धूमधाम से संपन्न हो चुका है वहीं  हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां दीवाली के ठीक एक माह बाद धूमधाम से बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। इसी कड़ी में आनी के धोगी में यह पर्व चार गढ़ों के देवता शमशरी महादेव के सम्मान में मनाया जाता है। दो दिवसीय इस पर्व में पुरातन संस्कृति की खूब झलक देखने को मिलती है। एक तरफ जहां प्रकाशोत्सव के प्रतीक के तौर पर जहां यहाँ पर दीये की जगह मशालें जाती हैं वहीं, पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर हर कोई झूमता हुआ नज़र आता है ।  हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दिवाली के एक माह बाद इस बार 26 ,27 नवंबर को धोगी में प्राचीन बूढ़ी दीवाली मनाई गई। दो दिवसीय इस पर्व के अंतिम दिन बुधवार  को क्षेत्र के आराध्य देवता शमशरी महादेव और टौणानाग की भावपूर्ण विदाई के साथ धोगी बूढ़ी दिवाली संपन्न हुई । इस पर्व के समापन से पूर्व जहां लोग खूब झूमें वहीं, देवताओं की विदाई के समय लोग भावुक भी हुए और अगले वर्ष फिर आने के वायदे के साथ ही देवताओं को विदा किया। गौर रहे कि दो दिनों के इस देव कारज में मंगलवार की रात को देवता शमशरी महादेव की पूजा करके आग की मशालें जलाकर लोगों ने मन्दिर की परिक्रमा करके बुराई रूपी अंधेरे को प्रकाश रूपी मशालों से क्षेत्र के लिए सुख - समृद्धि की कामना की । इस दौरान लोगों ने प्राचीन पंरपरा को कायम रखते हुए जतियाँ गाई जिसमें "किया माऊऐ किया काज बड़ी राजा देऊली राज देऊली वोले देऊलीऐ पारा ओरोऊ आई वुडिली ढेण तैसे नही सुना मेरा काम"  बुजुर्गों के अनुसार इनको गाने से भूत पिशाच आदि का भय नहीं रहता है। इसके अलावा दोपहर के समय मुंजी के घास से बना बड़ा रस्से को नचाया गया और उसके बाद उस रस्सी को काटा जाता है और उस रस्सी को लोग अपने अपने घर ले जाते हैं। कहा जाता है कि इसको अपने घर रखने से चूहे और सांप आदि नहीं निकलते हैं । विशेष तौर से बनाई गई मूंजी घास के रस्से से दोनों दल एक-दूसरे के साथ शक्ति प्रदर्शन करके देव-दानव के भायवह युद्ध और समुद्र मंथन की याद दिलाता है । इस दौरान आराध्य देव शमशरी महादेव और टौणा नाग अपने देवलुओं सहित झूमे । वहीं ग्राम पंचायत कोहिला के सांस्कृतिक दल ने भी पारम्परिक बेश-भूषा में सजकर ग्रामीणों के संग खूबसूरत नाटी लगाकर बेटी बचाओ और संस्कृति संरक्षण का संदेश दिया।   बुजुर्गों के अनुसार जब भगवान राम ने लंका पर विजय का परचम लहराया था और वे 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो उनके अयोध्या लौटने की खुशी में लोगों ने घी के दीये जलाए थे और तब से लेकर पूरे देश में धूमधाम से दीवाली मनाई जाती है लेकिन पहाड़ों पर भगवान राम की लंका पर विजय का पता काफी देर बाद चला था जिस कारण तब से लेकर दीवाली के एक माह बाद बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा शुरू हो गई । इस दौरान मन्दिर कमेटी के कर्म चन्द, संतोष ठाकुर,आत्मा राम,चमन शर्मा,विनोद ठाकुर,तारा चन्द,विजय बोध,दिवान राजा,रणजीत ठाकुर,अनिल नेगी,रणजीत ठाकुर,कमलेश ठाकुर,राज कुमार,बिट्टू,चुनी लाल, अम्बी चन्द,श्याम ठाकुर,राकेश कुमार,सतप्रकाश,शकुंतला देवी,वीना, ईशरा देवी,कौशल्या देवी,साहिल,राहुल,हरिभजन समेत गांववासी मौजूद रहे
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