तेरा लिखना तो न्यायालय के उस न्यायाधीश के उस निर्णय की तरह है
प्रेम को मुखर होना भी उतना ही आवश्यक है
जीव तो जीव, वनस्पति भी इस प्रेम का आलिंगन करती है। धरती पीली चूनर की आड़ में मुस्कुराती है।
कोई चले ना चले चलता जा,हिम्मत जुटा आगे बढ़ता जा।
राघव के भी आंखों में नींद कहां थी बैठक के सोफे पर बैठकर अपने अंतर्मन के युद्ध को शांत करने की कोशिश कर रहा था।
यात्रा-एक खूबसूरत अनुभव!
गले लगाते हुए बोली#डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्लाप्राथमिक शिक्षक एवं साहित्यकार, कानपुर नगर उत्तर प्रदेश