शिमला,
संक्रांति का त्योहार तब मनाया जाता है जब भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन से सूर्य का उत्तरायण भी होता है। मकर संक्रांति से जुड़ी कई ऐसी बातें है जो सबको आश्चर्य में डाल देती है।
जी हां, संक्रांति शुभ होगी या अशुभ इसका विचार उसके वाहन से किया जाता है। फिर उसका नाम भी रखा जाता है और फिर देखा जाता है कि वह देश-दुनिया के लिए कैसी रहेगी और किस राशि के जातक को इसके हिसाब से क्या-कुछ दान-पुण्य करना चाहिए।
हमारे हिंदू धर्म के धार्मिक कैलेंडरों व पंचांगों में मकर संक्रांति का देवीकरण किया गया है और इसके फलाफल निकाले जाते हैं। माना जाता है कि संक्रांति जो कुछ ग्रहण करती है, उसके मूल्य बढ़ जाते हैं या वह नष्ट हो जाता है। वह जिसे देखती है, वह नष्ट हो जाता है, जिस दिशा से वह जाती है, वहां के लोग सुखी होते हैं, जिस दिशा को वह चली जाती है, वहां के लोग दुखी हो जाते हैं। हालांकि यह कितना उचित है यह मुश्किल है।
संक्रांति को दुर्गा देवी मान लिए जाने से अब वह किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती है। उसके वाहन के साथ ही उपवाहन भी होते हैं। जैसे पिछली बार संक्रांति का वाहन सिंह एवं उपवाहन गज (हाथी) था।
इस बार 2020 में गर्दभ पर सवार होकर आ रही है संक्रांति। संक्रांति गर्दभ पर सवार होकर गुलाबी वस्त्र धारण करके मिठाई का भक्षण करते हुए दक्षिण से पश्चिम दिशा की ओर जाएगी। संक्रांति का उपवाहन मेष है। संक्रांति गर्दभ पर सवार होकर गुलाबी वस्त्र धारण करके मिठाई का भक्षण करते हुए दक्षिण से पश्चिम दिशा की ओर जाएगी।
साल 2020 में सूर्य 14 जनवरी की शाम को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। चूंकि संक्रांति का पुण्य स्नान सूर्योदय पर किया जाता है, इसलिए इस बार संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। 14 जनवरी को संक्रांति 'गर्दभ' पर सवार होकर आ रही है।
14 जनवरी को शाम 7.53 बजे सूर्य देव धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। चूंकि सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद होगा। इसके चलते पुण्यकाल 15 जनवरी को सुबह श्रेष्ठ रहेगा।
15 जनवरी को पुण्यकाल
सुबह 7.19 से शाम 5.46 बजे तक
महापुण्य काल 7.19 से 9.03 बजे तक
इस साल की मकर संक्रांति का नाम महोदर है। बुधवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में संक्रांति मनाई जाएगी। इस योग में दान-पुण्य करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
इस बार संक्रांति की विशेषता
संक्रांति का वाहन गधा एवं उपवाहन मेष (बकरी) बनेगा। खगजाति की यह संक्रांति शरीर पर मिट्टी का लेप लगाकर अरुण (लाल) रंग के वस्त्र तथा केतकी की माला धारण करके हाथ में दण्ड नामक शस्त्र लेकर कांसी के पात्र में पक्वान का भक्षण करती हुई, सूती हुई स्थिति एवं युवा अवस्था में रात्रि में तृतीय प्रहर में प्रवेश कर रही है l
जानें राशि अनुसार क्या करें दान ...
मेष- इस राशि के जातक को जल में पीले पुष्प, हल्दी, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। तिल-गुड़ का दान दें। उच्च पद की प्राप्ति होगी।
वृषभ- जल में सफेद चंदन, दुग्ध, श्वेत पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। बड़ी जिम्मेदारी मिलने तथा महत्वपूर्ण योजनाएं प्रारंभ होने के योग बनेंगे।
मिथुन- जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गाय को हरा चारा दें। मूंग की दाल की खिचड़ी दान दें। ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी।
कर्क- जल में दुग्ध, चावल, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चावल-मिश्री-तिल का दान दें। कलह-संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा।
सिंह- जल में कुमकुम तथा रक्त पुष्प, तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। तिल, गुड़, गेहूं, सोना दान दें। किसी बड़ी उपलब्धि की प्राप्ति होगी।
कन्या- जल में तिल, दूर्वा, पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। मूंग की दाल की खिचड़ी दान दें। गाय को चारा दें। शुभ समाचार मिलेगा।
तुला- सफेद चंदन, दुग्ध, चावल, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चावल का दान दें। व्यवसाय में बाहरी संबंधों से लाभ तथा शत्रु अनुकूल होंगे।
वृश्चिक- जल में कुमकुम, रक्तपुष्प तथा तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गुड़ का दान दें। विदेशी कार्यों से लाभ तथा विदेश यात्रा होगी।
धनु- जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प तथा मिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। चहुंओर विजय होगी।
मकर- जल में काले-नीले पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। गरीब-अपंगों को भोजन दान दें। अधिकार प्राप्ति होगी।
कुंभ- जल में नीले-काले पुष्प, काले उड़द, सरसों का तेल-तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। तेल-तिल का दान दें। विरोधी परास्त होंगे। भेंट मिलेगी।
मीन- हल्दी, केसर, पीत पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। सरसों, केसर का दान दें। सम्मान, यश बढ़ेगा l