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कविता

आन मिलो मुरारी: सबके चित में तुम बसे , जैसे मुरली ताल

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मीना चौधरी 'सलोनी | September 07, 2023 01:54 PM

 

भाल तिलक लोहित सजे,मुख देख हुए दंग,
छवि अद्भुत गोविंद की,रुचिर मनोहर अंग।

ग्वाल बाल संगी हुए,नंद - यशोदा लाल,
मथुरा वृंदावन रमे ,रुक्मिणि पति गोपाल।

अर्जुन के थे सारथी , पंचाली के आन,
विष घट में जाकर बसे,मीरा योगिन त्राण।

राधा जन्मों की सखी, बंधु सुदामा बाल ,
सबके चित में तुम बसे , जैसे मुरली ताल।

बहे नीर नित नयन से, हारी तक-तक राह,
यमुना तट राधा कहे , मिलन मुरारी चाह।

कुन्तल बिखरे नाग सा,चुभती रैन विषैल,
जीवन तनिक सँवार दो ,अश्रु भिगोए चैल।

धार अनवरत प्रेम के , हे युग के आदित्य,
जीवन के रसधार तुम , मानव के औचित्य।

हानि थर्म की हो रही, पुनः पधारो श्याम,
कलयुग डँसता व्याल सा,मिले मुक्ति तव नाम।

स्वरचित
मीना चौधरी 'सलोनी '
गुरुग्राम

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