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कविता

चाहत होती नहीं कुछ भी :राम भगत नेगी

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राम भगत नेगी | October 19, 2020 07:10 PM

किन्नौर,

चाहत थी उसे जीवन भर की खुशियाँ दूँ
चाहत थी उसकी खुशियों का हमसफर बनूं

पर वक्त से पहले वो बदल गये
हमारे जीवन से वे निकल गये

और चाहत सिर्फ चाहत बन कर रह गई
खुशियाँ मेरे जीवन से दगा दे गई

अब चाहत होती नहीं कुछ भी
अब इच्छा होती नहीं कुछ भी

अब इरादे मजबूत कर दिये है
खुद को उनसे दूर कर गये

अब वो दूर हम दूर
वो मजबूर हम मजबूत

अब वफाई होती नहीं उससे
बस चाहत अब होती नहीं उस से

वो हमें किनारा कर निकल गये
हम चाहत को दफन कर जी गये

चाहत थी उसे जीवन भर की खुशियाँ दूँ
वक्त से पहले वे बदल गये

 

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