उमड़-घुमड़ कर मेघा आये,
रिमझिम-रिमझिम वर्षा लाये।
चली सुहानी मस्त बयार,
मन ललचाये पूड़ी अचार।:
बाग -बगीचे बैठी हठकर,
प्याला चाय पकड़े डटकर।
देखो प्रकृति भी ललचाई,
वह भी प्याला चाय का लाई।
मेरी, उसकी चाय में अंतर,
इधर गरम,पर वो शीतलतर।
मेरी छलके, रूह दहकती,
वो छलकाए धरा महकती।
पीकर मैं अंतस जल जाऊँ,
वो बरसे तन-मन खिल जाऊँ।
मीरा द्विवेदी वर्षा "शचि" हरदोई, उत्तर प्रदेश।