त्योहार पर विशेष
त्योहार तो आते रहते हैं, पर उसका कोई अर्थ नहीं होता।
जब अपने संग न हो तो, सब फीका-फीका-सा होता है।।
दान-धर्म सब कुछ करती हूँ, पर कहीं कुछ रिक्तता-सी होती है।
कैसे मनोभावों को व्यक्त करूँ मैं, यह सोचकर ही एक टीस-सी उठ जाती है।।
रेवड़ी-गट्टा और बहुत कुछ, जब मायके से भिजवाया जाता है।
तब घर की बहन-बेटियों को, बचपन के गलियारों का वो सुहाना समय याद हो आता है।।
पतंग उड़ाकर, मन बहलाकर, खुद से ही खुद को समझाया करती हूँ।
मायका तेरा नहीं है मधु, झूठी तसल्ली खुद को बस यूँ ही दे दिया करती हूँ।।
मन-मस्तिष्क पर छा जाती है, मम्मी-पापा की वो मीठी यादें।
नहीं हैं मेरे बीच आज वो, फिर भी याद आती हैं उनकी वो प्यारी-प्यारी बातें।।
त्योहार तो आते हैं, एकता, प्रेम का संदेश हमें पहुँचाने।
फिर क्यों इस भरी दुनिया में, हो गई मैं अपनों से भी बेगाने।।
स्वरचित:
डॉ. मधु मिश्रा
हिमालयन अपडेट साहित्य सृजन
अध्यक्षा अहमदाबाद, गुजरात