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भारत आर्द्रभूमि संरक्षण को क्यों महत्व देता है

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ब्यूरो हिमालयन अपडेट | February 01, 2022 05:40 PM

शिमला,

विश्व आर्द्रभूमि दिवस (वर्ल्ड वेटलैंड डे) 2 फरवरी को मनाया जाता है। दुनिया भर में इस दिवस का आयोजन लोगों और हमारी धरती के लिए आर्द्रभूमि के अहम महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके अलावाविश्व आर्द्रभूमि दिवस ईरान के शहर रामसर में 1971 में किए गए आर्द्रभूमि से संबंधित रामसर समझौते को याद करने का भी एक अवसर है।

आज यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि रामसर समझौते के ग्लोबल वेटलैंड आउटलुक के अनुसारआर्थिक रूप से दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण इकोसिस्टम और वैश्विक जलवायु के नियामकों में शामिल आर्द्रभूमि जंगलों की तुलना में तीन गुना तेजी से गायब हो रहे हैं।  वनों के महत्व के बारे में जहां काफी जानकारियां उपलब्ध हैं,  वहीं आर्द्रभूमि की उपयोगिता को हमेशा पूरी तरह से नहीं समझा गया है।

पीटलैंडजोकि दुनिया के भूसतह का सिर्फ तीन प्रतिशत हिस्सा हैंवनों की तुलना में दोगुना कार्बन संचित करते हैं और इस प्रकार वे जलवायु परिवर्तनसतत विकास और जैव विविधता से संबंधित वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निश्चित रूप सेआर्द्रभूमि समुद्र तटों की रक्षा करके बाढ़ जैसी आपदाओं के जोखिम को कम करने में भी मदद करती है।

तटीय और समुद्री इकोसिस्टम में प्रजातियों की समृद्धि के बारे में किए गए एक हालिया संकलन ने समुद्री घास की कम से कम 14 प्रजातियोंमैनग्रोव की 69 प्रजातियों (सहयोगियों सहित)डायटम की 200 से अधिक प्रजातियोंपोरिफेरा की 512 प्रजातियोंसीनिडारिया की 1,042 प्रजातियोंमोलस्क की 55,525 प्रजातियोंक्रस्टेशियंस की 2,394 प्रजातियोंमत्स्य वर्ग (पाइसीज) की 2,629 प्रजातियोंसरीसृप वर्ग की 37 प्रजातियोंपक्षियों की 243 प्रजातियों और स्तनधारी की 24 प्रजातियों की उपस्थिति का संकेत दिया है। भारतीय मैनग्रोव में पायी जाने वाली वनस्पतियों की 925 प्रजातियों और जीव – जन्तुओं की 4,107 प्रजातियों के बारे में जानकारियां उपलब्ध हैं। देश के महत्वपूर्ण रीफ क्षेत्रों में फलतेफूलते कम से कम 478 प्रजातियों के साथ भारत के स्क्लेरेक्टिनिया कोरल में अन्य उष्णकटिबंधीय रीफ क्षेत्रों की तुलना में अधिक समृद्ध विविधता है।

हर साललाखों प्रवासी पक्षी भारत आते हैं और आर्द्रभूमि इस वार्षिक परिघटना में अहम भूमिका निभाती हैं। इकोलॉजी की दृष्टि से आर्द्रभूमि पर निर्भर रहने वाले ये प्रवासी जलपक्षी अपनी मौसमी आवाजाही के जरिए विभिन्न महाद्वीपोंगोलार्धोंसंस्कृतियों और समाजों को आपस में जोड़ते हैं। यह प्रवासन एक बेहद ही नाजुक दौर होता हैएक ऐसा समय जब पक्षियों को उच्चतम मृत्यु दर का सामना करना पड़ता है। स्टॉपओवर” साइट या ठहराव स्थल प्रवासी पक्षियों को आराम और शिकारियों एवं उनकी यात्रा के अगले चरण पर निकलने से पहले खराब मौसम से सुरक्षा प्रदान करती हैं। विविध प्रकार की आर्द्रभूमि पक्षियों को जरूरी ठहराव की सुविधा प्रदान करती है। बदले मेंये प्रवासी जलपक्षी संसाधनों के प्रवाहजैव ईंधन (बायोमास) के हस्तांतरणपोषक तत्वों के निर्यातखाद्य-संजाल संरचना और यहां तक कि सांस्कृतिक संबंधों को आकार देने में योगदान देकर उन आर्द्रभूमि में एक अहम भूमिका निभाते हैं जहां वे अपने जीवनकाल के विभिन्न चरणों में रहते हैं।

मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ) जलपक्षियों के उन नौ वैश्विक फ्लाईवे में से एक हैजिसमें साइबेरिया के सबसे उत्तर में स्थित प्रजनन भूमि से लेकर पश्चिम एवं दक्षिण एशिया के सबसे दक्षिण में स्थित गैर-प्रजनन भूमि तकमालदीव और ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र के प्रवासन मार्ग शामिल हैं (सीएमएस 2005)। मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ) के लगभग 71 प्रतिशत प्रवासी जलपक्षी भारत को एक ठहराव स्थल के रूप में उपयोग करते हैं। इसलिएइस फ्लाईवे के भीतर जलपक्षियों की आबादी को बनाए रखने के लिए भारतीय आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य को सही बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

आर्द्रभूमि का भारतीय संस्कृति और परंपराओं के साथ भी एक गहरा संबंध है। मणिपुर में जहां लोकटक झील स्थानीय लोगों द्वारा इमा’ (अर्थात् माता) के रूप में पूजनीय हैवहीं सिक्किम की खेचोपलरी झील मनोकामना पूरी करने वाली झील’ के रूप में लोकप्रिय है। उत्तर भारत का छठ पर्व लोगसंस्कृतिपानी और आर्द्रभूमि के जुड़ाव की सबसे अनोखी अभिव्यक्तियों में से एक है। कश्मीर में डल झीलहिमाचल प्रदेश में खज्जियार झीलउत्तराखंड में नैनीताल झील और तमिलनाडु में कोडाईकनाल देश के लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैंजो स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ओडिशा की चिल्का झील में किया जाने वाला मत्स्यपालन और पर्यटन इस लैगून के आसपास रहने वाले दो लाख से अधिक लोगों की आजीविका को सहारा देता है।

इतने व्यापक महत्व के बावजूदवैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि का अस्तित्व जल निकासीप्रदूषणअंधाधुंध उपयोगआक्रामक प्रजातियोंवनों की कटाई और मिट्टी के कटाव सहित विभिन्न कारणों से खतरे में है।

हालांकिवैश्विक स्तर पर आर्द्रभूमि के सिकुड़ते जाने की प्रवृत्ति के उलट भारत गर्व के साथ आर्द्रभूमि के संरक्षण में सक्रिय है। ऐसा करते हुए हमने अपने समृद्ध अतीत से प्रेरणा लेना जारी रखा है। आर्द्रभूमि का उल्लेख चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी मिलता हैजहां इसे अनुपा’ या अतुलनीय भूमि कहा गया है और पवित्र माना गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र नोदी द्वारा निरंतरता को विकास का एक प्रमुख पहलू बनाए जाने के साथ भारत में आर्द्रभूमि की देखभाल करने के तरीके में समग्र सुधार हुआ है। यह देश अब रामसर जैसे 47 स्थलों की भूमि है। यह दक्षिण एशिया के किसी भी देश के लिए रामसर जैसे स्थलों का सबसे बड़ा नेटवर्क है। जिन लोगों को शायद रामसर के बारे में जानकारी नहीं हैउन्हें जानना चाहिए कि यह एक आर्द्रभूमि स्थल है जिसे अंतरराष्ट्रीय महत्व की एक परिघटना के लिए नामित किया गया।

भारत की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य-योजना (2017-2031) ने अंतर्देशीय जलीय इकोसिस्टम के संरक्षण को 17 प्राथमिकता वाले कार्यों में से एक के रूप में पहचाना है और महत्वपूर्ण उपायों के तौर पर एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि मिशन और एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि जैव विविधता रजिस्टर के गठन की परिकल्पना की है। नदी बेसिन प्रबंधन में आर्द्रभूमि के एकीकरण को नदी प्रणालियों के प्रबंधन से जुड़ी एक रणनीति के रूप में चिन्हित किया गया है। आर्द्रभूमि हमारे पानी को शुद्ध तथा जलस्रोतों को पुनर्जीवित करती हैं और अरबों लोगों के खाने के लिए मछली एवं चावल मुहैया कराती हैं।

इसकी महत्ता को समझते हुएजलवायु परिवर्तन से संबंधित राष्ट्रीय कार्य-योजना ने राष्ट्रीय जल मिशन एवं हरित भारत मिशन में आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत प्रबंधन को शामिल किया है।

केन्द्र द्वारा अधिनियमित विभिन्न नियमों एवं विनियमों के तहत आर्द्रभूमि को संरक्षण प्राप्त है। भारतीय वन अधिनियम1927वन (संरक्षण) अधिनियम1980 और भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम1972 के विभिन्न प्रावधान वनों और नामित संरक्षित क्षेत्रों के भीतर स्थित आर्द्रभूमि से संबंधित नियामक ढांचे को परिभाषित करते हैं। पर्यावरणवन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2017 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम1986 (ईपी अधिनियम) के तहत आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियमों को अधिसूचित किया। इन नियमों के प्रावधानों के अनुसार, राज्यों के भीतर मुख्य नीति और नियामक निकायों के रूप में राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरणों का गठन किया गया है।

इसके अलावाईपी अधिनियम के तहततटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना (2018) तथा इसके संशोधनों और द्वीप संरक्षण क्षेत्र (आईपीजेड) अधिसूचना 2011 के तहत तटीय आर्द्रभूमि संरक्षित हैं।

पर्यावरणवन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2020 में आर्द्रभूमि के कायाकल्प’ को एक परिवर्तनकारी विचार के रूप में अपनाया। इस कार्यक्रम की संरचना एक चहुंमुखी दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द की गई है: क) आधारभूत जानकारी विकसित करना;  ख) आर्द्रभूमि स्वास्थ्य कार्ड के रूप में मापदंडों के एक सेट का उपयोग करके आर्द्रभूमि की स्थिति का त्वरित मूल्यांकनग) आर्द्रभूमि मित्र के रूप में हितधारक प्लेटफार्मों को सक्षम बनानाऔर घ) प्रबंधन संबंधी योजना। तब से लेकर अब तक 500 से अधिक आर्द्रभूमि को कवर करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का विस्तार किया गया है।

आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में और आर्द्रभूमि के संरक्षण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सभी महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि में आर्द्रभूमि मित्र पंजीकृत किए गए हैं और इन आर्द्रभूमि में महत्व और खतरे से संबंधित संकेतक स्थापित किए गए हैं।

आर्द्रभूमि से संबंधित सभी प्रबंधकों और हितधारकों के उपयोग के लिए आर्द्रभूमि से जुड़े एक ज्ञान केन्द्र के रूप में एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि पोर्टल (https://indianwetlands.in/को विकसित किया गया है।

आर्द्रभूमि न केवल जैव विविधता के उच्च संकेन्द्रण में सहायता करती हैबल्कि भोजनपानीफाइबरभूजल पुनर्भरणजल शोधनबाढ़ नियंत्रणतूफान से बचावकटाव का नियंत्रणकार्बन का भंडारण और जलवायु संबंधी विनियमन जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों एवं इकोलॉजी से जुड़े कार्यों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है।

भारत सरकार आर्द्रभूमि संरक्षण को अत्यधिक महत्व देती है और विकास की योजना के निर्माण और निर्णय लेने के सभी स्तरों पर उनकी संपूर्ण उपयोगिता को मुख्यधारा में लाना चाहती है।

(भूपेंद्र यादवकेन्द्रीय पर्यावरणवन एवं जलवायु परिवर्तन और श्रम एवं रोजगार मंत्री हैं। उन्होंने द राइज ऑफ द बीजेपी: द मेकिंग ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट पॉलिटिकल पार्टी नाम की पुस्तक लिखी है।)    
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