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कविता

ममता की तस्वीर उकेरूँ, निश्छल प्यार लुटाती अम्मा ;गीता चौबे गूँज

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ब्यूरो हिमालयन अपडेट 7018631199 | March 03, 2022 08:26 PM
गीता चौबे गूँज

लिए हाथ में तूली बाला, सोच रही क्या चित्र बनाऊँ!
युद्ध का चित्र उकेरूँ या फिर, शांति-दूत से पृष्ठ सजाऊँ?
जग में हाहाकार मचा है, क्या दुनिया को सत्य बताऊँ!
या रुत के मादक सौरभ का, दग्ध हृदय को बोध कराऊँ?

राजा ऋतुओं का आया है, लेकर खुशबू का नजराना।
रंग-बिरंगे पुष्प सजे हैं, उनको हौले से सहलाना।।
दुख सारे छूमंतर होंगे, मौसम से जो ताल मिलाएँ।
युद्ध शांति में बदल सकेंगे, अमन-फूल हर हृदय खिलाएँ।।

दिल कहता है पुष्प बनाऊँ, या फिर मादा भ्रूण अजन्मा।
ममता की तस्वीर उकेरूँ, निश्छल प्यार लुटाती अम्मा।।
मेहनतकश मजदूर कोई, या भोली-भाली सुरबाला।
या दृग के मोती को ढालूँ, जिसने सारा ही कह डाला।।
मन में दुविधा आन पड़ी है, कैसे निज कर्तव्य निभाऊँ!
अमन-चैन के संदेशों को, जन-जन के मन पहुँचा पाऊँ।।
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