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कविता

कलम हाथ में थाम कर,लिखना है अपनी जज़्बात; विभा वर्मा वाची

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ब्यूरो हिमालयन अपडेट 7018631199 | March 04, 2022 08:12 PM
विभा वर्मा वाची

अकेलापन का एहसास

हाथों में क़लम थामे,लिखूँ अपने मन की बात।
गुमसम-गुमसम सहमी सी,कुछ सोचूँ ऐसी बात।
कलम हाथ में थाम कर,लिखना है अपनी जज़्बात,
अपनी बंदिश खुद लिखूँ न लिखूँ ,कैसे होंगी बात।

रंग बिरंगे फूल खिले,कोई इसे मसल न देना।
ख़ामोश है जज़्बात,हक़ीक़त में न बदल लेना।
तनहाइयाँ कभी-कभी,वीराने में अच्छा लगता है
खुद को आगे बढ़ाने का सपना सच्चा लगता है।

कभी-कभी अकेलापन मनहूस सा लगने लगता,
सुनी निगाहें ,हक़ीक़त बयान करने लगता है।
नज़र मिली ,बीती जिंदगानी याद आने लगता है।
डर कर नहीं,हिम्मत से सपना साकार करना है।

बड़े सिद्दत से लिखने की कोशिश करती ,
नील गगन में उड़ने की,ख्वाहिश रखी होती।
पर लेखनी बेसब्री से मचलने को थी तैयार ,
उसे रखना सम्भाल के,टूटे नही सब्र के बांध।

अकेलापन का एक खास अन्दाज़ होता है ,
एहसास कर पाना बड़ा मुश्किल होता है।
इसीलिए तो कहते रखना इसे सम्भाल के,
दुनिया का नजारा देखें,परवाह नहीं बातों के।

 

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