नयी उमंग
पिंजरबद्ध पखेरु को जब, खुला आसमां मिल जाये।
किसके बस की बात है फिर जो, उसको बस में कर पाये।।
टन टन टन स्कूल की घंटी, बजी दौड़ बालक आए।
पाटी - पोथी बस्ते में रख, पानी की बोतल लाए।।
बडे दिनों के बाद मिले सब, नाजुक बड़ा समय आया।
घर में कैद हुए सारे, नहीं कोई किसी से मिल पाया।।
आज कुलांचें भर भर के गुंजार किया मैदानों को।
फिर इक दूजे से मिले तो, जैसे पंख लगे अरमानों को।।
आये हैं सब साथ- साथ, मन ललक है शिक्षा पाने की।
ये कठिन दौर फिर भी आशा है, जीवन सफल बनाने की।।
(स्वरचित )